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अपने आखिरी जन्मदिन पर गांधीजी ने क्यों कहा था, ‘अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रही’

locationनई दिल्लीPublished: Oct 02, 2018 03:45:52 pm

अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रहीअपने अंतिम जन्मदिन पर 2 अक्टूबर 1947 को बापू ने कहा था, “अब मैंने ज्यादा जिंदगी जीने की इच्छा छोड़ दी है। मैंने कभी कहा था कि सवा सौ साल तक जिंदा रहूं, लेकिन ज्यादा जीने की अब मेरी इच्छा नहीं रही।”

Mahatma Gandhi

अपने आखिरी जन्मदिन पर गांधीजी ने क्यों कहा था, ‘अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रही’

नई दिल्ली। आज पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है और उनसे जुड़े ढेरों किस्से सामने आ रहे हैं। लेकिन ऐसे में यह जानना काफी दिलचस्प रहेगा कि गांधी जी ने अपने जन्मदिन पर क्या कहा था। अपने अंतिम जन्मदिन पर 2 अक्टूबर 1947 को बापू ने कहा था, “अब मैंने ज्यादा जिंदगी जीने की इच्छा छोड़ दी है। मैंने कभी कहा था कि सवा सौ साल तक जिंदा रहूं, लेकिन ज्यादा जीने की अब मेरी इच्छा नहीं रही।”
बताया जाता है कि महात्मा गांधी कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। हालांकि लोग उनके जन्मदिन पर जश्न जरूर मनाते थे। 2 अक्टूबर, 1947 भी एक ऐसी ही तारीख थी जब उनका जन्मदिन था। कई तरह में वह महात्मा गांधी का सबसे अलग जन्मदिन था और ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह बापू के जीवन का आखिरी जन्मदिन था।
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इस बारे में जलगांव, महाराष्ट्र स्थित गांधी रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक सुदर्शन अय्यंगर कहते हैं, “गांधीजी का सबसे महत्वपूर्ण जन्मदिन उनकी मृत्यु से कुछ महीनों पहले 2 अक्टूबर 1947 को था। पूरे दिन उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहा। कई विदेशी आए, सैंकड़ों तार आए। तमाम लोग उन्हें बधाइयां देने पहुंचे थे।”
महात्मा गांधी
अय्यंगर की मानें तो महात्मा गांधी ने उस दिन के बारे में लिखा, “ये बधाइयां हैं या मातमपुरसी, मेरी समझ में नहीं आ रहा। मैं इसे क्या कहूं और मैं इसे क्या समझूं। इसे संताप समझूं? एक जमाना था, जब जनता मेरी कही हर बात मानती थी और आज की परिस्थिति यह है कि मेरी बात कोई सुनता तक नहीं है। मैंने अब ज्यादा जीने की इच्छा छोड़ दी है। मैंने कभी कहा था कि मैं सवा सौ साल तक जिंदा रहूं, लेकिन अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रही।”
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दरअसल, आजादी और देश के विभाजन के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों से गांधीजी बहुत व्यथित थे। लाख कोशिशों के बावजूद भी स्थितियां उनके नियंत्रण से बाहर हो गई थीं। उन्होंने कभी जिसकी कल्पना तक नहीं की थी, वह सब घटित हो रहा था। गांधी यह सब देखने के बदले मृत्यु को स्वीकारना बेहतर समझ रहे थे।
कहना न होगा जन्मदिन की बधाइयां गांधी के लिए मातमपुरसी ही साबित हुईं। लगभग चार महीने बाद नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 की शाम गोली मारकर मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या कर दी। स्थान राष्ट्रीय राजधानी स्थित बिड़ला भवन था। गांधी के उपरोक्त कथ्य से जन्मदिन और बधाइयों के प्रति उनकी अरुचि भी साफ होती है। गांधीवादी अध्येता प्रोफेसर अय्यंगर ने कहा, “हां, गांधीजी अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। जन्मदिन को लेकर ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला है, कहीं भी इसका कोई जिक्र नहीं है। ऐसी कोई सूचना नहीं मिली है।”
महात्मा गांधी
फिर गांधी अपने जन्मदिन पर करते क्या थे? अय्यंगर ने कहा कि गांधीजी के लिए जन्मदिन आम दिनों की तरह होता था, वह आम दिनों की तरह अपने काम में लगे रहते थे। हालांकि वह वर्ष 1931 में बापू के जन्मदिन का उल्लेख करते हैं, “उस समय वह (गांधीजी) लंदन में थे, वहां भारतीयों ने जिल्द हाउस नामक जगह पर उन्हें मानपत्र दिया और उनके जन्मदिन का जश्न मनाया। उस दिन लंदन में गांधी सोसाइटी, इंडियन कांग्रेस लीग ने सम्मेलन किया था, वहां उन्हें पुराना अंग्रेजी चरखा भेट में दिया गया था।”
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गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति अय्यंगर गांधी के जन्मदिन के विवरण देते हैं, “2 अक्टूबर 1917 को एनीबेसेंट ने गोखले हॉल में गांधी की तस्वीर का अनावरण किया था। वर्ष 1922, 1923, 1932, 1942, 1943 में बापू (महात्मा गांधी) अपने जन्मदिन पर जेल में थे। 1942 में उन्होंने जन्मदिन पर आईसक्रीम खाई थी, जेल अधीक्षक ने उन्हें फूलहार भेजे थे। उन्हें 64 रुपये भेंट में दिए गए थे।”
आईआईटी (मुंबई) के पूर्व प्रोफेसर अय्यंगर ने आगे कहा, “वर्ष 1924 में गांधीजी जन्मदिन पर उपवास पर थे। यह उपवास सितंबर से शुरू हुआ और 2 अक्टूबर को भी जारी रहा था। वह हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उपवास कर रहे थे।” लेकिन गांधी की 150वीं जयंती पर सरकार और कई संगठनों की तरफ से साल भर खास जश्न मनाए जा रहे हैं।
इस सवाल पर प्रोफेसर अय्यंगर कहते हैं, “गांधीजी के जन्मदिन पर उनके मूल्यों को समझना चाहिए, उनके प्रति समर्पित होना चाहिए। उनके साथ कस्तूरबा गांधी का भी जन्मदिन मनाया जाना चाहिए। सिर्फ झाड़ू लेकर चलने से कुछ नहीं होता। गांधीजी के लिए झाड़ू सफाई का प्रतीक नहीं, बल्कि मन की निर्मलता, शोषित समाज को गले लगाने का प्रतीक थी।”
गांधीवादी विचारक अय्यंगर ने सरकार से आग्रह किया, “गांधी के शाश्वत मूल्यों को पुन: स्थापित कर उनके रचनात्मक कार्यों को मजबूती से आगे ले जाने का वातावरण पैदा करें। गांधीजी की भावनाओं के साथ उनके 150वें जन्मदिन पर उन्हें याद करना चाहिए।”
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