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मेजर की हत्या के बाद पिता पेंशन मांगते हुए चल बसे, 24 साल बाद अब मां को मिली पेंशन

Published: Dec 19, 2017 05:06:01 pm

Submitted by:

Chandra Prakash

मेजर भुवन चंद्र भट्ट की हत्या के बाद इस बेरहम सरकारी लालफीता शाही का शिकार उनका परिवार हुआ। हत्या के 24 साल बाद उनकी मां को पेंशन मिला है।

Major Bhuwan
देहरादून। जहां पूरा देश का सिर आज भारतीय सेना के नाम पर गौरव से उठ जाता है, वहीं एक सैन्य अधिकारी की हत्या के बाद उसके पिता अपने बेटे की पेंशन की आस लेकर चल बसे। यह संघर्ष मेजर की मां और भाई ने जारी रखा जिसका नतीजा आने में दो दशक लगे। सैन्य कल्याण अधिकारी की पहल पर 24 वर्षों बाद पेंशन और एरियर देने के निर्देश दिए गए। इस दौरान सैन्य अधिकारी के माता-पिता, भाई-बहन की विवशता की जवाबदेही किसकी है, इस पर पूरा सरकारी तंत्र खामोश है।

शहीद का परिवार, लालफीता शाही का शिकार
अल्मोड़ा निवासी मेजर भुवन चंद्र भट्ट की हत्या के बाद इस बेरहम सरकारी लालफीता शाही का शिकार उनका परिवार हुआ। हाल यह रहा कि स्थानीय पुलिस ने भट्ट की हत्या की बात तक नहीं स्वीकार की, वह इस घटना को एक दुर्घटना बताती रही। बाद में सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में पता चला कि मेजर की मौत दुर्घटना में नहीं, बल्कि उनकी हत्या कर दी गई थी।

पेंशन मांगते मांगते चल बसे शहीद के पिता
मेजर भुवन चंद्र भट्ट घर में सबसे बड़े बेटे थे, इसके चलते घर की सारी जिम्मेदारियां उन पर थीं। उनके चार भाई और चार बहनें थीं। इसके अलावा उनके पिता गौरी दत्त के पास आजीविका का कोई ठोस सहारा नहीं था। घर के बड़े बेटे की हत्या हो जाने पर खेतीबाड़ी से गुजारा नहीं हो पा रहा था। इसके चलते मेजर के पिता ने कई बार पेंशन हेतु प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन काम नहीं बना। भागदौड़ करते-करते वे भी वर्ष 1998 में चल बसे।

मां ने कहा, बेटा नहीं लौट सकता, पेशन ही दे दो
अब मां तारा देवी अपने छोटे बेटे युगल किशोर भट्ट के साथ लालडांठ हल्द्वानी में रहती हैं। इस संघर्ष के दौरान मई में युगल की संयोगवश कर्नल डीडी पाठक से मुलाकात हुई। युगल ने सारा घटनाक्रम उन्हें बताया तो उन्होंने जिला सैनिक कल्याण अधिकारी से संपर्क करने का मशविरा दिया। कर्नल की सलाह मानते को ध्यान में रखते हुए युगल ने जिला सैनिक कल्याण अधिकारी मेजर बीएस रौतेला से भेंट की। उन्होंने कागजात देने के बाद विभागीय लिखापढ़ी की। दो दिन पहले विभाग ने मेजर की मां को पारिवारिक पेंशन और एरियर देने के निर्देश दिए। बुजुर्ग मां ने कहा कि खोए बेटे को कोई लौटा नहीं सकता लेकिन अब परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी।

24 साल बाद भी हत्या के कारण का खुलासा नहीं
मेजर भट्ट सेना की चिकित्सा कोर में सिकंदराबाद, पुणे अस्पताल में तैनात थे। भुवन चंद्र 17 अगस्त 1993 को पुणे जाने के लिए द्वाराहाट से हल्द्वानी आए। चूंकि ट्रेन 18 अगस्त को थी इसलिए वे नैनीताल घूमने के लिए चले गए, लेकिन वे लौट कर नहीं आए। इससे परेशान माता-पिता और रिश्तेदारों ने भुवन की तलाश शुरू की। इस मामले में सेना ने भी मेजर को ढ़ूंढ़ना शुरू कर दिया। लगभग 16 दिन बाद हनुमानगढ़ी में उनकी लाश मिली। इस मामले में जब उनके छोटे भाई युगल किशोर भट्ट से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि इस संबंध में पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सैन्य अधिकारियों से संपर्क करने पर सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी से मालूम चला कि उनके भाई की हत्या की गई थी। हांलाकि हत्या के कारणों व हत्या किसने की इसका अभी तक नहीं पता चल सका है।
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