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अयोध्या विवाद पर कोर्ट के फैसले से खफा जमीयत उलेमा, मौलाना मदनी बोले- हम वहां मस्जिद ही मानेंगे

मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि हम वहां मस्जिद ही मानते थे और आगे भी वहां मस्जिद ही मानेंगे।

Nov 15, 2019 / 11:32 am

Kapil Tiwari

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नई दिल्ली। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने का रास्ता बीते दिनों आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एकदम साफ हो गया है। कोर्ट ने विवादित स्थल का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दे दिया था, जबकि मुस्लिम पक्ष को कहीं और जमीन देने की बात कही थी। कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम पक्ष में नाराजगी देखने को मिल रही है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान आया है।

जमीयत उलेमा अयोध्या में ही मानता है मस्जिद

मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि बाबरी मस्जिद अयोध्या में ही थी और हम अभी भी उसे मस्जिद ही मानते हैं। मदनी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनके विचार में परिवर्तन नहीं आया है, बल्कि निराशा मिली है, क्योंकि फैसला विरोधाभाष से भरा है। एक तरफ कोर्ट फैसले में खुद कहता है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनी थी तो भी फैसला उनके हक में दिया जाता है जिन्होंने मस्जिद तोड़ी थी।

सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़ देनी चाहिए जमीन- जमीयत उलेमा

मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए कहीं और मिलने वाली पांच एकड़ जमीन को मंजूर नहीं करना चाहिए। मौलाना ने कहा कि ये विवाद जमीन का नहीं बल्कि विवादित स्थल के मालिकाना हक का था। मदनी ने कहा कि अगर मस्जिद की वह जमीन नहीं है तो फिर अलग से जमीन देने का आदेश क्यों दिया गया? अगर शीर्ष अदालत कहती कि बाबर ने मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनाई थी तो हम उस फैसले को मान लेते। तब हम इस्लाम के लिहाज से इसके हक में नहीं होते कि वहां दोबारा मस्जिद बनाई जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि फैसला कई सवाल खड़े करता है।

पुनर्विचार याचिका पर चल रहा है मंथन- जमीयत उलेमा

इस दौरान मदनी ने ये भी जानकारी दी कि जमीयत उलेमा ए हिंद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका को लेकर जमीयत में मंथन चल रहा है। गुरुवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों, कानून के जानकारों और सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ बैठक देर रात तक चलती रही। कोर्ट के फैसले को अनुवाद कराकर पढ़ा जा रहा है।

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