मिलिए ‘आइस मैन ऑफ इंडिया’ से, जिन्होंने लद्दाख को दिया पानी
Published: Aug 25, 2015 05:27:00 pm
मिलिए आइस मैन ऑफ इंडिया से, जिन्होंने लद्दाख के लोगों को पानी देने के लिए बनाए 10 आर्टीफिशियल ग्लेशियर्स
नई दिल्ली। लद्दाख की खूबसूरत पहाडिय़ां भले ही टूरिस्टों के लिए एक बेस्ट डेस्टीनेशन हो, लेकिन यहां रहने वाले लोगों को कितना संघर्ष करना पड़ता है इस बात का शायद आपको अंदाजा भी ना हो। यहां के लोगों को अपनी बेसिक रिक्वायरमेंट पूरा करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। लद्दाख में पानी की काफी कमी है। ऐसे में 79 वर्षीय चीवांग नोरफेल ने अपनी इंजीनियरिंग स्किल्स की मदद से आर्टीफिशियल गलेशियर्स बनाए। जिनकी मदद से लोगों को अपनी जरूरतों के हिसाब का पानी मिल पाया। आइए जानते हैं इस इंस्पीरेशनल शख्स के बारे में कुछ और बाते…
यहां से शुरु होती है कहानी
चीवांग एक रिटायर्ड सिविल इंजीनियर है और उन्हें हमेशा एक सोल्यूशन प्रोवाइडर के रूप में देखा गया है। कहानी 1966 की है जब चिवांग की सब डिविजनल ऑफिसर के रूप में जंसकार में पोस्टिंग हुई थी। जंसकार लद्दाख के सबसे पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में से एक है। उन्हें जंसकार में स्कूल बिल्डिंग, पुल, कैनाल और सड़कें आदी बनाने का काम सौंपा गया था। कम लेबर होने की वजह से इस इलाके में ये काम पूरे कराना एक बेहद मुश्किल काम था। इसके चलते उन्होंने खुद से काम करना शुरु किया और अपनी मदद के लिए कुछ स्थानीय लोगों को काम की ट्रेनिंग भी दी। चिवांग द्वारा दी गई इस ट्रेनिंग से आज लद्दाख के स्थानीय अच्छा पैसा भी कमा पा रहे हैं।
10 ग्लेशियर बनाए
आज चिवांग नोरफेल को ‘आइस मैन ऑफ इंडियाÓ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने लद्दाख जैसे ठंडे इलाके में लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए 10 आर्टीफिशियल ग्लेशियर्स बनाए हैं। उनका जन्म 1936 में हुआ था और वे किसान परिवार से हैं। उन्होंने गवर्नमेंट सर्विस में अपने जीवन के 36 साल दिए हैं। चिवांग ने कहा कि लद्दाख में ज्यादातर गांवो में अब उनके द्वारा बनाई गई सड़के, पुल, बिल्डिंग और सिंचाई प्रणालियां मौजूद हैं। लेकिन उनकी सबसे बड़ी अचीवमेंट है आर्टीफिशियल ग्लेशियर्स।
कैसे आया ग्लेशियर बनाने का आइडिया
चिवांग के दिमाग में पहली बार आर्टीफिशियल ग्लेशियर बनाने का आइडिया तब आया जब उन्होंने एक नल को इसलिए खुला देखा पाया ताकि पानी जम ना जाए। लद्दाख में ठंड के मौसम में पानी नल से गिरने के बाद जमीन पर पड़ते ही जम जाता है। चिवांग ने ग्लेशियर्स बनाने के लिए अपने सारे इंजीनियरिंग स्किल्स लगाए। उन्होंने अपना पहला एक्सपेरीमेंट फुत्से गांव में शुरु किया। उन्होंने पानी की दिशा को मोडऩे के लिए गांव के पास कुछ कैनल बनाए, ताकि पानी को जमा किया जा सका। साथ ही उन्होंने ठंड में पानी को जमने से बचाने के लिए शेडेड एरिया भी बनाया। क्योंकि ये ग्लेशियर्स असल ग्लेशियर्स के मुकाबले काफी नीचे हैं इसलिए ये पिघलते भी पहले हैं। अप्रैल का मौसम लद्दाख में खेती करने के लिए होता है और इन आर्टीफिशियल ग्लेशियर्स की मदद से लोगों को खेती, पीने व अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी मिल सका।