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बता दें कि इसरो इसके लिए 100 किलोग्राम वजनी पे-लोड ले जाने में सक्षम यान बनाने की कोशिश कर रहा है। यह शुक्रयान उपकरणों और मिशन के परिचालन के लिए 500 वाट ऊर्जा भी खुद ही उत्पादित करेगा। इसरो ने कहा है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अंतरिक्ष तकनीक में हुए विकास, अवलोकन क्षमता में वृद्धि और कंप्यूटेशनल तकनीक में उन्नति से सौर प्रणाली के अध्ययन में काफी प्रगति हुई है। इससे सौर मंडल की जटिल प्रक्रियाओं की समझ बढ़ी है।
सौर हवाओं के प्रभाव का अध्ययन
इसरो के मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह के सतह, उप-सतह, वायुमंडलीय रसायन तथा सौर विकिरण और सौर हवाओं के प्रभाव का अध्ययन करना होगा। इस दौरान शुक्र की वायुमंडलीय रचना, आयनमंडल, प्लाज्मा, सूर्य और शुक्र के बीच की परस्पर प्रतिक्रियाओं सहित अन्य पहलुओं का भी अध्ययन किया जाएगा।
ऐसे पहुंचेंगे करीब
अंतरिक्षयान को शुक्र ग्रह की 500 गुणा 60 हजार किलोमीटर वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। यानी, इस कक्षा में यान की शुक्र सतह से निकटतम दूरी 500 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 60 हजार किमी होगी।
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इसलिए जरूरी
आपको बता दें कि शुक्र को धरती की जुड़वां बहन माना जाता है। आकार, द्रव्यमान, घनत्व, रचना और गुरुत्व में दोनों ग्रहों के बीच काफी समानता है। ऐसे में शुक्र से हमें पृथ्वी पर जीवन के विकास से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है।