भारत के मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर उपभोक्ताओं को इंटरनेट की एमबीपीएस (मेगाबाइट पर सैकंड) स्पीड देने का वादा तो करते हैं, लेकिन उसे सिर्फ डाउनलोड के लिए उपलब्ध कराते हैं।
नई दिल्ली. भारत के मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर उपभोक्ताओं को इंटरनेट की एमबीपीएस (मेगाबाइट पर सैकंड) स्पीड देने का वादा तो करते हैं, लेकिन उसे सिर्फ डाउनलोड के लिए उपलब्ध कराते हैं। अपलोड के लिए उपभोक्ताओं को इंटरनेट स्पीड केबीपीएस (किलोबाइट पर सैकंड) में मिलती है। ट्राई ने सर्विस प्रोवाइडरों की इस बेईमानी को सेवा की गुणवत्ता में जानबूझकर कमी माना है। ट्राई ने कई बार कम्पनियों को चेताया और फटकार भी लगाई, लेकिन स्थिति जस की तस है। सर्विस प्रोवाइडर की ओर से दी जा रही स्पीड को मापने के लिए ट्राई के माई स्पीड एप के साथ ही दर्जनों वेबसाइट उपलब्ध हैं। इन वेबसाइटों के जरिए जांच के नतीजे चौंकाने वाले हैं। असल में अपलोड स्पीड के बारे में आम उपभोक्ताओं का एक बड़ा तबका जानकारी के अभाव में यह नहीं जान पाता कि वह इंटरनेट के जिस पैक को खरीद रहा है, उसमें उसे डाउनलोड के साथ अपलोड स्पीड भी बराबर मिलनी चाहिए क्योंकि वह दोनों के लिए भुगतान करता है।
हमारे साथ कितनी धोखाधड़ी
दावा : ट्राई ने क्वालकॉम के हवाले से कहा है कि 4जी सर्विस प्रोवाइडर १०० से 150 एमबीपीएस तक की डाउनलोड और 50 एमबीपीएस की अपलोड स्पीड देने का दावा है।
हकीकत : मात्र एक से पांच एमबीपीएस तक की डाउनलोड तथा 500 केबीपीएस की अपलोड स्पीड मिल रही है।
दावा : 3जी सर्विस प्रोवाइडर 1.8 से 42 एमबीपीएस तक डाउनलोड व 384 केबीपीएस से 11 एमबीपीएस तक अपलोड स्पीड का दावा कर रहे हैं।
हकीकत : डाउनलोड स्पीड 500 केबीपीएस से 1.5 एमबीपीएस तक और अपलोड स्पीड 256 केबीपीएस से 400 केबीपीएस तक स्पीड मिल रही है।
ऐसा क्यों कर रहे सर्विस प्रोवाइडर
दोनों स्पीड बराबर रखने के लिए कम्पनियों को बैंडविड्थ की क्षमता बढ़ानी होगी। कम्पनियां अनलिमिटेड पैक में अपलोड स्पीड कम रखकर स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल घटाकर उसका उपयोग वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को अपलोड स्पीड देने में करती हैं। इससे अतिरिक्त कमाई करती हैं।