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अच्छा काम न करने वाले 340 अफसरों की मोदी सरकार ने की छुट्टी, समय से पहले दिया रिटायरमेंट

locationनई दिल्लीPublished: Feb 11, 2021 07:13:22 pm

Submitted by:

Mahendra Yadav

अपेक्षित प्रदर्शन नहीं करने पर पिछले छह वर्षों में कुल 340 अधिकारियों को समय से पहले सेवानिवृत्त किया गया है।
कार्मिक मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी।

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मोदी सरकार अच्छा काम न करने वाले अधिकारियों और अफसरों पर सख्त है और ऐसे अफसरों को समय से पहले रिटायरमेंट दिया जा रहा है। इस बात की जानकारी संसद में कार्मिक राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने दी। जितेन्द्र सिंह ने बताया कि अपेक्षित प्रदर्शन नहीं करने पर पिछले छह वर्षों में कुल 340 अधिकारियों को समय से पहले सेवानिवृत्त किया गया है। जितेन्द्र सिंह ने यह जानकारी राज्य सभा में एक सवाल के लिखित जवाब में दिया।
इन अधिकारियों के खिलाफ की कार्रवाई
जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में जानकारी देते हुए बताया कि विभिन्न मंत्रालयों, विभागों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, एफआर 56 (जे) और इसी तरह के अन्य नियमों के प्रावधानों के तहत जुलाई 2014 से दिसंबर 2020 के दौरान ग्रुप ए के 171 अधिकारियों और ग्रुप बी के 169 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
समय से पहले किया जा सकता है सेवानिवृत
साथ ही उन्होंने बताया कि इन नियमों में ऐसे प्रावधान हैं, जिसके तहत किसी सरकारी कर्मचारी को कथित रूप से भ्रष्ट होने या अपेक्षित प्रदर्शन नहीं करन पर सार्वजनिक हित में समय से पहले सेवानिवृत्त किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने बताया कि उन्होंने कहा कि एक मार्च 2018 की स्थिति के अनुसार सरकार के अधीन नियमित सिविल कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या 38,02,779 और पदस्थ कर्मचारियों की संख्या 31,18,956 है।
इन सवालों के भी दिए जवाब
इसके अलावा जितेन्द सिंह ने सिविल सेवा परीक्षा के परिणामों की घोषणा किए जाने के बाद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा जारी की जाने वाली आरक्षित सूची पर उठ रहे सवालों का भी जवाब दिया। उन्होंने बताया कि आरक्षित सूची जारी करने की व्यवस्था साल 2003 से चालू हुई थी। उन्होंने इसे एक नियमित प्रक्रिया बताया। उन्होंने कहा कि आरक्षित सूची, प्रतीक्षा सूची नहीं है। यह एक नियमित प्रक्रिया है। साथ ही उन्होंने बताया कि इस व्यवस्था पर उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई थी। हालांकि कोर्ट ने 2010 के अपने एक फैसले में इसे बरकरार रखा था।
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