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मोदी सरकार मानसूत्र सत्र में नहीं ला पाएगी लैंड बिल

Published: Jul 19, 2015 05:05:00 pm

संसद का मानूसन सत्र समाप्त होने के बाद सरकार अप्रत्याशित रूप से चौथी बार भूमि अध्यादेश को फिर से जारी कर सकती है

PM modi

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नई दिल्ली। संसद का मानूसन सत्र समाप्त होने के बाद सरकार अप्रत्याशित रूप से चौथी बार भूमि अध्यादेश को फिर से जारी कर सकती है क्योंकि इस विधेयक पर कोई आम सहमति अब तक नहीं बन पाई है। सरकारी सूत्रों ने बताया, आम सहमति न बन पाने के कारण मानसून सत्र के दौरान विधेयक को संसद में पेश किए जाने की संभावना नहीं। इस विधेयक पर विचार कर रही, भाजपा सांसद एस एस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली, संयुक्त संसदीय समिति की योजना अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए तीन अगस्त तक दो सप्ताह का समय विस्तार और मांगने की है।

संकेत है कि समिति मानसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर पाएगी और समय के विस्तार की मांग कर सकती है। ऎसी स्थिति में सरकार के लिए अध्यादेश एक बार फिर जारी करना जरूरी हो जाएगा। तीसरी बार यह अध्याधेश 31 मई को जारी किया गया था। सरकार के सूत्रों को भूमि अध्यादेश फिर से जारी करने में कुछ भी असामान्य नहीं लगता। उन्होंने कहा कि कम से कम 15 अध्यादेशों को दो या अधिक बार जारी किया जा चुका है।

एक अध्यादेश की अवधि छह माह होती है। अगर संसद सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के अंदर उसे संसद की मंजूरी नहीं मिलती तो अध्यादेश को फिर से जारी करना होता है। संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो कर 13 अगस्त तक चलेगा। सरकार का क हना है कि अध्यादेश को उसकी निरंतरता बनाए रखने और अधिगृहित की जा चुकी जमीन के एवज में लोगों को क्षतिपूर्ति का ढांचा मुहैया कराने के लिए पुन: जारी करना जरूरी है।

पीएम मोदी सरकार द्वारा लाए गए भूमि विधेयक का विरोध कर रही कांग्रेस ने 31 मई को अध्यादेश को पुन: जारी किए जाने पर केंद्र की जमकर आलोचना की थी। बहरहाल, सरकार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि संप्रग द्वितीय सहित विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में कम से कम छह अध्यादेशों को तीन तीन बार जारी किया गया था। सूत्रों के अनुसार, इस बात की संभावना कम ही है कि अपने पांच साल के कार्यकाल में से एक साल पूरा कर चुकी सरकार इस विधेयक को पारित कराने के लिए संयुक्त सत्र की राह पर चलेगी तथा विधेयक को “बलपूर्वक” आगे बढ़ाने के लिए और अधिक आलोचनाओं को आमंत्रित करेगी।

विधेयक पर आम सहमति बनाने के लिए प्रयासरत संयुक्त संसदीय समिति ने पूर्व में अपना कार्यकाल 28 जुलाई तक यानी एक सप्ताह तक बढ़ाने का फैसला किया था। लेकिन उसे यह पर्याप्त नहीं लगा और उसने अपना कार्यकाल तीन अगस्त तक बढ़ाने का फैसला कि या। वास्तव में समिति को 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी। सूत्रों ने बताया कि सत्र शुरू होने पर समिति को कार्यकाल बढ़ाने के बारे में संसद की मंजूरी लेनी होगी। अब समिति ने दो सप्ताह का सेवा विस्तार मांगने का फैसला किया है। समिति को अब तक मिलीं 672 प्रस्तुतियों में से 670 ने राजग सरकार द्वारा भूमि विधेयक में किए जा रहे संशोधनों का विरोध किया है। समिति के समक्ष 52 प्रतिनिधि भी पेश हो चुके हैं।

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