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मदर्स डे- पति के शहीद होने के बाद भी पुत्री को सेना में भेजेगी ये मां

Published: May 08, 2016 12:10:00 am

मौत के तीन माह बाद भी नहीं मिली हनुमंथप्पा की निशानियां, पर बेटी को सैनिक ही बनाऊंगी 

Mothers day

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‘मैं अपनी इकलौती औलाद दो वर्षीया पुत्री नेत्रा को पिता की कमी कभी महसूस नहीं होने दूंगी। मां होने के नाते उसे प्यार व दुलार देते हुए पिता की भावनाओं के अनुरूप परवरिश करूंगी। मुझे मेरे पति हनुमंथप्पा पर गर्व है। उनका सपना था कि पुत्री नेत्रा अंग्रेजी माध्यम में पढ़-लिख कर आत्मनिर्भर बने।
 
‘पत्रिका’ से बातचीत में महादेवी ने ने दर्द के घूंट पीते हुए ये भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि बेटी नेत्रा के पिता शहीद हनुमंथप्पा जांबाज सैनिक थे। सेना में पिता के शौर्य के किस्से सुनाकर बेटी नेत्रा में भी साहस, संस्कार और राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा कर दूंगी। उसे उसके पिता की तरह भारतीय सेना में शामिल करूंगी। मेरे लिए देश की सेवा सर्वोपरि है। मौका मिले तो मैं भी देश की सेवा करना पसंद करूंगी।

मैं स्वयं सेना में सेवा को देशसेवा का सबसे अच्छा अवसर मानती हूं। जब मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी तब अपने गांव में शहीद सैनिक की सरकारी सम्मान के साथ अंत्येष्टि और लोगों में उत्पन्न देशप्रेम का जज्बा देखा था। तब मैंने भी इरादा किया था कि मैं भी विवाह करूंगी तो एक सैनिक से। सैनिक के लिए लोगों के दिलों में अत्यधिक सम्मान होता है।

ईश्वर ने मेरी सुन ली और हनुमंथप्पा से विवाह हुआ। विवाह के पांच साल बाद मेरे पति हनुमंथप्पा शहीद हो गए। अपने दो साल की बच्ची व मुझ पर मानो आसमान टूट पड़ा। जब पति मेरे साथ थे तो सारा जीवन आसान लगता था। उनके जाने के पश्चात बेटी की देखरेख की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई।

उनके बिना बेटी का पालन-पोषण करना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। बेटी को पिता का प्यार देने की भी कोशिश करूंगी। बड़ी होने पर पिता के बारे में पूछेगी तो गर्व के साथ कहूंगी कि तुम्हारे पिता देश सेवा में शहीद हो गए। मुझे विश्वास है कि पिता के देशप्रेम के जज्बे व अच्छी परवरिश निश्चय ही बेटी नेत्रा के जीवन को प्रेरणा देती रहेगी।

यूं सहेजेंगे यादें
महादेवी ने कहा कि पति की शहादत से पूर्व उपयोग की जाने वाली वस्तुएं व कपड़े फिलहाल सेना से प्राप्त नहीं हुए हैं। सेना से उनका सामान मिलते ही वे सभी निशानियों व स्मृति चिह्नों को घर में ही संग्रहालय के रूप में सजा कर रखेंगी। महादेवी कहती हैं कि उनके पति की शहादत के बाद उन्हें व परिवार को हर ओर आदर व सम्मान मिला। अब तक करीब दो सौ स्मृति चिन्ह अभिनंदन पत्र उनके पास संगृहीत हो चुके हैं। अब सभी यादों को उनके घर में ही संग्रहालय बना कर संजोया जाएगा।
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