इस बीच बॉन यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान दल ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। इस दल ने SARS-Cov-2 कोविड-19 के कारण बनने वाले एंटीबॉडी टुकड़ों की पहचान की है। ये नैनोबॉडी ( Nanobodies ) क्लासिक एंटीबॉडी की तुलना में काफी छोटे होते हैं, जो कोरोना से लड़ने में मददगार साबित हो सकते हैं।
कोरोना वैक्सीनेशन से पहले ये कैसी लापरवाही, पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में भी सामने आया चौंकाने वाला मामला
कोरोना वायरस (कोविड-19) से मुकाबले की दिशा में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है। इश शोध में वैज्ञानिकों ने ऐसे नौनोबॉडी की पहचान की है, जो इस घातक वायरस पर अंकुश लगा सकता है, यह मानव कोशिकाओं में वायरस को दाखिल होने से रोकने में सक्षम है।
खास बात यह है कि इन नैनोबॉडी का इस्तेमाल अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इलाज के लिए भी किया गया था।
कोरोना वायरस (कोविड-19) से मुकाबले की दिशा में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है। इश शोध में वैज्ञानिकों ने ऐसे नौनोबॉडी की पहचान की है, जो इस घातक वायरस पर अंकुश लगा सकता है, यह मानव कोशिकाओं में वायरस को दाखिल होने से रोकने में सक्षम है।
खास बात यह है कि इन नैनोबॉडी का इस्तेमाल अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इलाज के लिए भी किया गया था।
वायरस पर करते हैं हमला
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बॉन के शोधकर्ताओं ने नैनोबॉडी को संभावित रूप से प्रभावी अणुओं में संयोजित किया है, जो वायरस के विभिन्न हिस्सों पर एक साथ हमला करते हैं। यूनिवर्सिटी में हुई शोध के मुताबिक नैनोबॉडीज कोरोना संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली की रक्षा में एंटीबॉडी एक महत्वपूर्ण हथियार हैं।
वे बैक्टीरिया या वायरस की सतह संरचनाओं से बंधते हैं और उनकी प्रतिकृति को रोकते हैं।
किसी बीमारी से जंग में रणनीति के तहत बड़ी मात्रा में प्रभावी एंटीबॉडी का उत्पादन कर उन्हें रोगियों में इंजेक्ट कर इसका लाभ लिया जा सकता है।
शोध के मुताबिक एंटीबॉडी का उत्पादन मुश्किल और काफी समय लेने वाला भी है। ऐसे में इसके जल्दी और व्यापक उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बॉन के शोधकर्ताओं ने नैनोबॉडी को संभावित रूप से प्रभावी अणुओं में संयोजित किया है, जो वायरस के विभिन्न हिस्सों पर एक साथ हमला करते हैं। यूनिवर्सिटी में हुई शोध के मुताबिक नैनोबॉडीज कोरोना संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली की रक्षा में एंटीबॉडी एक महत्वपूर्ण हथियार हैं।
वे बैक्टीरिया या वायरस की सतह संरचनाओं से बंधते हैं और उनकी प्रतिकृति को रोकते हैं।
किसी बीमारी से जंग में रणनीति के तहत बड़ी मात्रा में प्रभावी एंटीबॉडी का उत्पादन कर उन्हें रोगियों में इंजेक्ट कर इसका लाभ लिया जा सकता है।
शोध के मुताबिक एंटीबॉडी का उत्पादन मुश्किल और काफी समय लेने वाला भी है। ऐसे में इसके जल्दी और व्यापक उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
कम खर्चीला है नैनोबॉडी को विकसित करना
ऐसे में शोधकर्ताओं ने अणुओं के एक अन्य समूह, नैनोबॉडी पर ध्यान केंद्रित किया। विश्वविद्यालय ने अध्ययन के सह-लेखक डॉ फ्लोरियन श्मिट के मुताबिक, नैनोबॉडी एंटीबॉडी के टुकड़े होते हैं जो इतने सरल होते हैं कि वे बैक्टीरिया या खमीर से उत्पन्न हो सकते हैं, जो कम खर्चीला है।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने अणुओं के एक अन्य समूह, नैनोबॉडी पर ध्यान केंद्रित किया। विश्वविद्यालय ने अध्ययन के सह-लेखक डॉ फ्लोरियन श्मिट के मुताबिक, नैनोबॉडी एंटीबॉडी के टुकड़े होते हैं जो इतने सरल होते हैं कि वे बैक्टीरिया या खमीर से उत्पन्न हो सकते हैं, जो कम खर्चीला है।
डॉ श्मिट ने कहा, हमने सबसे पहले कोरोनावायरस की एक सतह प्रोटीन को अल्फाका और एक लामा ( जानवर की एक प्रजाति ) में इंजेक्ट किया। “उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मुख्य रूप से इस वायरस के खिलाफ निर्देशित एंटीबॉडी का उत्पादन करती है।
जटिल सामान्य एंटीबॉडी के अलावा, लामा और अल्फाका भी एक सरल एंटीबॉडी संस्करण का उत्पादन करते हैं जो नैनोबॉडी के आधार के रूप में काम कर सकते हैं।
जटिल सामान्य एंटीबॉडी के अलावा, लामा और अल्फाका भी एक सरल एंटीबॉडी संस्करण का उत्पादन करते हैं जो नैनोबॉडी के आधार के रूप में काम कर सकते हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का बड़ा अलर्ट, 2020 के मुकाबले ज्यादा कठिन हो सकता है 2021, जानिए क्या है वजह कुछ हफ्तों बाद, शोधकर्ताओं ने जानवरों से रक्त का नमूना लिया, जिसमें से उन्होंने उत्पादित एंटीबॉडी की आनुवंशिक जानकारी निकाली।
इस “लाइब्रेरी” में अभी भी लाखों अलग-अलग निर्माण योजनाएं शामिल थीं। एक जटिल प्रक्रिया में, उन्होंने उन लोगों को निकाला जो कोरोनोवायरस, स्पाइक प्रोटीन की सतह पर एक महत्वपूर्ण संरचना के तौर पर पहचाने गए।
अध्ययन के सह-लेखक डॉ पॉल-अल्बर्ट कोनिग के मुताबिक कुल मिलाकर हमने दर्जनों नैनोबॉडी प्राप्त कीं, जिनका हमने फिर विश्लेषण किया। ये विश्लेषण बताता है कि ये नैनोबॉडी कोरोना से लड़ने में मददगार साबित हो सकते हैं।