सरकार के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार तीन तलाक के मुद्दे पर गंभीर है। इस वजह से आने वाले सत्र में संसद में नया कानून या फिर मौजूदा कानून में संशोधन का विधेयक पेश किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक अभी तक तीन तलाक की पीड़ित महिलाओं के पास न्याय का कोई रास्ता नहीं है।
पीड़ित महिलाएं पुलिस के पास शिकायत लेकर जाती तो हैं लेकिन मामले में दंड का सही प्रवाधान नहीं होने के चलते पुलिस भी कोई ठोस कदम नहीं उठा पाती। इस वजह से केंद्र सरकार मुस्लिम महिलाओं को राहत देने के लिए जल्द से जल्द इस मसले पर नया कानून बनाना चाहती है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाना संभव नहीं क्या था तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
आपको बता दें कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को राहत देते हुए तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच में 3 जजों ने इसको असंवैधानिक घोषित किया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस यूयू ललित तीन तलाक के खिलाफ थे।
आपको बता दें कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को राहत देते हुए तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच में 3 जजों ने इसको असंवैधानिक घोषित किया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस यूयू ललित तीन तलाक के खिलाफ थे।
प्रमोशन में आरक्षण का मामला: SC में सुनवाई करेगी 5 जजों की बेंच, जानें अब तक क्या-क्या हुआ? कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ये मामला धर्म से जुड़ा है, इस वजह से संसद को इस पर कानून बनाना चाहिए। इसके साथ ही तीन तलाक मूल अधिकारों पर चोट नहीं है। कोर्ट ने कहा तलाक ए बिद्दत अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर अब कोई शख्स अपने पत्नी को तीन तलाक देते है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।