बारिश के पानी में बढऩे वाले मच्छरों के लार्वा को अब केक खिलाकर नष्ट किया जाएगा। मणिपाल स्थित एक शोध टीम ने बारिश के पानी में बढऩे वाले मच्छरों के लार्वा को मारने के लिए नई तकनीक बनाई है।
नई दिल्ली। बारिश के पानी में बढऩे वाले मच्छरोंं के लार्वा को अब केक खिलाकर नष्ट किया जाएगा। मणिपाल स्थित एक शोध टीम ने बारिश के पानी में बढऩे वाले मच्छरों के लार्वा को मारने के लिए नई तकनीक बनाई है। डॉ. धूलप्पा मेलिनामणि के नेतृत्व में इस टीम ने एक ऐसा केक बनाया है जिसे खाते ही मच्छरों के लार्वा तो मारे जाएंगे लेकिन इसका दुष्प्रभाव दूसरे जानवरों या पर्यावरण पर नहीं होगा। यहां एक वेटरिनरी रिसर्चर (पशुचिकित्सा शोधकर्ता) मुर्गी पालन (पोल्ट्री) के कचरे को मच्छरों से होने वाली बीमारियों- मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया आदि – के खतरे से छुटकारा पाने में के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
मच्छरों के लार्वा को नष्ट करता है स्टार्च
डॉ. धूलप्पा मेलिनामणि शिवामोग्गा की कर्नाटक वेटरिनरी, ऐनिमल्स ऐंड फिशरीज सायंसेज यूनिवर्सिटी के वेटरिनरी अनैटमी व हिस्टॉलजी डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रफेसर हैं। वह मच्छरों के लार्वा को नष्ट करने के लिए पोल्ट्री के कचरे से लार्विसाइडल केक बनानेवाली टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। यह लार्विसाइडल केक एक ऐसा पदार्थ है जिसे पोल्ट्री के कचरे जैसे नष्ट होने वाले जैविक पदार्थ से बनाया जाता है। इसमें स्टार्च भी मिलाया जाता है जिससे बनने वाला लार्विसाइड मच्छरों के लार्वा (कीड़ों का सक्रिय अपरिपक्व रूप) को नष्ट कर देता है। उन्होंने बताया कि ठहरे पानी में डालने से इस पदार्थ के घटक उसमें घुल जाते हैं। जैसे ही मच्छरों के लार्वा इन्हें खाते हैं ये जहर के रूप में उनके पेट में जाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। इस पदार्थ को पोल्ट्री के कचरे से ही फेदर (पंख), फेदर पाउडर और स्टार्च लेकर बनाया जाता है। साथ ही मच्छरों के लार्वा को आकर्षित करने के लिए थोड़ा गेहूं का आटा मिलाया जाता है।
प्रफेसर धूलप्पा ने बताया, ‘इस प्रॉजेक्ट के तहत बनाया गया पदार्थ अलग-अलग प्रकार के जलाशयों में नियंत्रित मात्रा में लंबे वक्त के लिए लार्विसाइड्स छोड़ सकता है। इसकी खासियत यह है कि इसे सभी प्रकार के लोग खरीद सकते है और यह मछली जैसे जीवों के लिए सुरक्षित भी है।’उन्होंने कहा कि इसका नमूना तैयार है और मणिपाल यूनिवर्सिटी की मदद से जून में इसका फील्ड ट्रायल किया जाएगा। भविष्य में इसके विकास की भी काफी संभावना है। इसे पूरी तरह से मकैनिकल और समय के अनुसार खत्म होने वाला पदार्थ बनाया जा सकता है।