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निर्भया के दोषियों के डेथ वारंट पर रोक के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा गृह मंत्रालय, कल होगी सुनवाई

निर्भया के चार दोषियों (Nirbhaya case convicts) अक्षय, पवन, मुकेश और विनय के खिलाफ मृत्युदंड का आदेश जारी किया गया था, मगर दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को सजा पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी थी।

Feb 01, 2020 / 07:43 pm

Prashant Jha

निर्भया के दोषियों के डेथ वारंट पर रोक के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा गृह मंत्रालय, कल होगी सुनवाई

नई दिल्ली। निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में तिहाड़ जेल प्रशासन व गृह मंत्रालय ने शनिवार को फांसी की सजा पाए चार दोषियों के खिलाफ जारी डेथ वारंट पर रोक लगाने वाली निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया। इस मामले पर हाईकोर्ट 2 फरवरी को सुनवाई कर सकती है।

गृह मंत्रालय की दलील में कहा गया है कि उक्त चार दोषियों ने अपनी पुनर्विचार याचिका, उपचारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका व दया याचिका को एक के बाद एक अलग-अलग दाखिल की है। इसका कारण यह है कि दोषी उन्हें मिली फांसी की सजा को अधिक समय तक टालना चाह रहे हैं।

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दोषियों की फांसी पर अनिश्चितकालीन तक रोक

याचिका में कहा गया है, “दोषियों ने जानबूझकर देरी करके अपनी पुनर्विचार/उपचारात्मक/दया याचिका दायर करने का फैसला किया है, ताकि मृत्यु के वारंट के निष्पादन में देरी हो सके।” निर्भया के चार दोषियों (Nirbhaya case convicts) अक्षय, पवन, मुकेश और विनय के खिलाफ मृत्युदंड का आदेश जारी किया गया था, मगर दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को सजा पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी थी।

16 दिसंबर 2012 की रात हुई थी घिनौनी वारदात

बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी के वसंत विहार इलाके में 16 दिसंबर, 2012 की रात 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा निर्भया के साथ चलती बस में बहुत ही बर्बर तरीके से सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। इस जघन्य घटना के बाद पीड़िता को इलाज के लिए सरकार सिंगापुर ले गई जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

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इस मामले में दिल्ली पुलिस ने बस चालक सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें एक नाबालिग भी शामिल था। इस मामले में नाबालिग को तीन साल तक सुधार गृह में रखने के बाद रिहा कर दिया गया। जबकि एक आरोपी राम सिंह ने जेल में खुदकुशी कर ली थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने इस मामले में चार आरोपियों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था।

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