हम लोग तकनीक के दम पर न केवल देश की नई पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं बल्कि आज भारत पहले से ज्यादा सुरक्षित है। डीआरडीओ की 41वीं कॉन्फ्रेंस में अजीत डोभाल ने कहा कि रक्षा जरूरतों के हिसाब से बेहतर तकनीक हमारे पास होनी चाहिए। इस बात के लिए हमें अपनी रक्षा सेवाओं और खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर तैयारियों का गंभीरता के साथ आकलन करना होगा। दुश्मन देश पर दबाव बनाए रखने के लिए रक्षा जरूरतों को तय करना होगा।
उन्होंने सैन्य अधिकारियों व रक्षा विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए कहा कि हमेशा से तकनीक और पैसे की ताकतों ने ही मानज जाति की नियत का निर्धारण किया है। इतिहास गवाह है कि हमेशा विजेता वहीं हुए हैं जिनके पास उच्च प्रौद्योगिकी थी।
इस मामले में भारत का अनुभव अच्छा नहीं है। हम उपविजेता रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि रनर अप के लिए कोई ट्रॉफी नहीं है। जीत उसे मिलती है जो जीत हासिल करने के लिए सबसे बेहतर प्रदर्शन करता है।
सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने कहा कि डीआरडीओ ने इस चीज को सुनिश्चित करने की कोशिश की है सेवाओं की आवश्यकताओं को घरेलू समाधानों के माध्यम से पूरा किया जाए। हमें विश्वास है कि हम स्वदेशी हथियार प्रणालियों और उपकरणों के जरिए अगला युद्ध लड़ेंगे और जीतेंगे। हम भविष्य के युद्ध के लिए प्रणालियों को देख रहे हैं। हमें साइबर, स्पेस, लेजर, इलेक्ट्रॉनिक, रोबोटिक तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास को देखना शुरू करना होगा।
डीआरडीओ कॉन्फ्रेंस में नौसेना अध्यक्ष एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा कि मेरे पास तीन सुझाव है। पहला हमारे पास आक्रामक वाली आला तकनीक होनी चाहिए। दूसरा हमें अमरीका के डीएआरपीए जैसे मॉडलों पर करीब से नजर डालनी चाहिए। तीसरा- छोटे आविष्कारों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।