भारत के ग्रामीण इलाकों में गरीबी के हालात उस स्तर पर पहुंच चुके हैं, मानो देश में आपातकाल जैसी स्थितियां बनी हुई हैं। आज हम आपको देश के एक आदिवासी परिवार के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने गरीबी के आगे जीते-जी अपना दम तोड़ दिया। दरअसल मध्य भारत के आदिवासी इलाके में रहने वाली सुधरी बाई की गोद एक सड़क हादसे की वजह से सूनी हो गई।
सुधरी बाई के बेटे का नाम बामन बताया जा रहा है, जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। बामन एक निजी बस सर्विस के लिए कंडक्टर का काम करता था। जिससे उसका घर चल रहा था। बामन की उम्र अभी महज़ 21 साल ही थी, और 15 फरवरी को ही एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई। बामन की भाभी ने बताया कि उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि अपने देवर की लाश को अस्पताल से घर ले जा सकें।
बामन की मां तो इस हद तक तैयार हो गई थी कि वह अपने बेटे की लाश को रास्ते में ही कहीं ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गई थीं। भाभी ने बताया कि उन्होंने गांव वालों से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। जिसके बाद उन्होंने मां की रज़ामंदी के बाद देवर की डेड बॉडी को अस्पताल के मेडिकल कॉलेज को दान में दे दिया। बता दें कि मेडिकल कॉलेज को पहली बार कोई बॉडी दान में मिली है।