आपको बता दें 1988 में गयूम सरकार को हटाने के लिए मालदीव के समुद्री डाकुओं और श्रीलंका के तमिल उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के 80 सदस्यों ने जंग छेड़ दिया था। मालदीव की सेना इस संकट से निपटने के लिए तैयार नहीं थी। उग्रवादियों ने मुख्य सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया था। एयरपोर्ट, टेलीविजन और रेडियो स्टेशन जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर भी उग्रवादियों का कब्जा था।
मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को जब लगा कि उग्रवादियों को रोकना उनके सेना के बस की बात नहीं है तब उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मदद मांगी। राजीव गांधी ने 1600 पैराट्रूपर्स को मालदीव की रक्षा के लिए भेजा। भारतीय सैनिकों को लेकर il-76 ट्रांसपोर्ट प्लेन आगरा से उड़ा और बिना रुके मालदीव जा पहुंचा।
ये कोई मामूली बात नहीं कि मालदीव सरकार के मदद मांगने के 12 घंटे के अंदर भारतीय सैनिक वहां उग्रवादियों को खत्म करने पहुंच गए थे। भारतीय सैनिकों ने तेजी से हमला करते हुए उग्रवादियों को मार गिराया और उनसे महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों और ठिकानों से कब्जा वापस ले लिया। जब भारतीय पैराट्रूपर्स मालदीव में उग्रवादियों से लड़ रहे थे तभी नौसेना के दो फ्रिगेट INS गोदावरी और INS बेतवा भी मालदीव के समुद्रतट पर पहुंच गई। नेवी ने उग्रवादियों के समुद्री जहाजों को नष्ट कर दिया। ऐसी ही है हमारी भारतीय सेना जिसे देखकर सबके हाथ सलाम करने को अपने आप खड़े हो जाते हैं।