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बीते 13 वर्षों में दस हजार सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, 1600 से ज्यादा लोगों की गई जान

locationनई दिल्लीPublished: Jan 03, 2019 03:53:31 pm

Submitted by:

Anil Kumar

गृह मंत्रालय ने देशभर में वर्ष 2004 से 2017 के बीच हुए सांप्रदायिक घटनाओं के संबंध में एक रिपोर्ट जारी किया है, जो बहुत ही डराने वाला है।

बीते 13 वर्षों में दस हजार सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, 1600 से ज्यादा लोगों की गई जान

बीते 13 वर्षों में दस हजार सांप्रदायिक घटनाएं, 1600 से ज्यादा लोगों ने गवांई जान

नई दिल्ली। भारत में सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर हमेशा से राजनीति होती रही है। यदि बात करें चुनावी समय का तो ये घटनाएं और उसपर राजनीति कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में जो बातें सामने आई है उससे लोकतंत्र को एक बड़ा झटका लगा है। दरअसल गृह मंत्रालय ने देशभर में हुए सांप्रदायिक घटनाओं के संबंध में एक रिपोर्ट जारी किया है, जो बहुत ही डराने वाला है। यह रिपोर्ट वर्ष 2004 से 2017 के बीच हुई घटनाओं का है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते 13 वर्षों में 10,399 घटनाएं घटी है, जिसमें 1605 लोगों ने अपनी जान गवांई और 30,723 लोग घायल हो हुए हैं। बता दें कि गृह मंत्रालय ने यह खुलासा आरटीआई के जवाब में किया है।

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2008 में हुई सबसे ज्यादा घटनाएं

रिपोर्ट में बताया गया है कि देशभर में 2008 में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक घटनाएं घटी। रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में 943 घटनाएं घटी जिसमें 167 लोगों की मौत हो गई जबकि 2,354 लोग घायल हो गए। इससे ठीक उलट 2011 में सबसे कम सांप्रदायिक घटनाएं घटी। 2011 में 580 मामले दर्ज किए गए जिसमें 91 लोगों की मौत हो गई और 1899 लोग घायल हो गए। बता दें कि नोएडा के आईटी प्रोफेशनल और आरटीआई कार्यकर्ता अमित गुप्ता ने आरटीआई दायर करते हुए गृह मंत्रालय से जवाब मांगा था। आपको बता दें कि गुप्ता ने गृह मंत्रालय से यह भी पूछा कि 2004 से 2017 के बीच सांप्रदायिक झड़पों, दंगों और लड़ाईयों में कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया और कितनों को दोषी करार देते हुए सजा दी गई। इस पर मंत्रालय ने कहा कि ये सभी आंकड़े राज्य सरकार के पास होते है। क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन आती है और स्थानीय पुलिस उस मामले में कार्रवाई करती है। अमित गुप्ता का कहना है कि 2004 से 2017 के बीच हुए सांप्रदायिक घटनाओं का ब्यौरा एक साथ वह देश के सामने रखना चाहते थे। वह यह तथ्य देश के सामने लाना चाहते थे कि यूपीए और एनडीए सरकार में से किसके कार्यकाल में इस तरह की घटनाएं ज्यादा या कम घटित हुई है।

 

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