मुहर्रम के दिन खून बहाकर शोक प्रदर्शन नहीं करते यहां के लोग, इसके पीछे की वजह है खास
सामाजिक और मानविकता के दूष्टिकोण से ये काम वाकई में काबिले तारीफ है

नई दिल्ली। अनेकता में एकता का प्रदर्शन करता है भारत, हर जाति सम्प्रदाय के लोग मिलजुल कर रहते है यहां। उत्सव भी लोग साथ-साथ मनाते हैं। उत्तरी गुजरात में भी हर धर्म और जाति के लोग रहते हैं लेकिन बात आज होगी यहां पर रहने वाले इस्लाम सम्प्रदाय के लोगों के बारे में, उनके द्वारा मनाए जाने वाले एक उत्सव के बारे में।
हम जानते हैं कि मुहर्रम का दिन मातम का होता है। इस दिन हर तरफ लोग शहीद कर्बला की याद में खुद को जंजीरों और चाकूओं से घायल करते हैं या फिर अंगारों पर चलते हैं और इस तरह शोक का प्रदर्शन करते हैं।

मुहर्रम के दिन हर तरफ मातम की चीखें होती है लेकिन उत्तरी गुजरात के सबकांता जिले की बात इस मामले में अलग है क्योंकि यहां सियां सम्प्रदाय के लोग ऐसा नहीं करते क्योंकि इस इलाके में मुहर्रम के जुलूस के का नेतृत्व करने वाले शिया जाफरी मश्यकी मोमिन जमत ने ये फैसला लिया कि पैगम्बर मोहम्मद के दामाद इमाम हुसैन के बलिदान पर वो खून बहाने और खुद को घायल नहीं करेंगे बल्कि इसके विपरीत इस गांव के मुस्लिम मुहर्रम के दिन ब्लड डोनेट करेंगे। कुछ इस तरह यहां इस खास मुहिम की शुरूआत की गई है।

शिया जाफरी मश्यकी मोमिन जमत का कहना है कि पिछले साल मुहर्रम के दिन यहां के लोगों ने 2800 ब्लड यूनिट को एकत्रित किया। सामाजिक और मानविकता के दूष्टिकोण से ये काम वाकई में काबिले तारीफ है क्योंकि अकसर सही समय पर और सटीक ब्लड गु्रप के न मिल पाने से लोगों की मौत हो जाती है, ऐसे में सबकांता जिले की ये मुहिम कई लोगों की जान बचाएगी और इससे ज्य़ादा बढ़कर और क्या हो सकता है। इस गांव में मुर्हरम के दिन लोग इस तरह नई बनाई गई रीतियों का पालन करते हैं और ऐसा करने से इन्हें बहुत सुकून मिलता है।
Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें (Hindi News App) Get all latest Miscellenous India News in Hindi from Politics, Crime, Entertainment, Sports, Technology, Education, Health, Astrology and more News in Hindi