अक्सर हम यह देखते हैं कि गरीब तबके को हर कोई दबाता है। लेकिन कभी-कभी वह बात दिल पर लग जाती है और व्यक्ति खुद को अपमानित महसूस करता है। कुछ लोग इसे अपमान का बदला लेने के लिए खुद को साबित करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं।
बचपन से ही गोविंद जायसवाल यह सुनकर बड़े हुए थे कि एक रिक्शेवाले का बेटा है। भला कोई रिक्शेवाला अपने बेटे को IAS कैसे बना सकता है। जब भी कोई गोविंद के लिए उसकी पिता की ऐसी बात करता था, तो यह बातें उसके दिल में चुभती थी। गोविंद के सामने उसके पिता के बारे में कोई कुछ बोले उसके पिता का संघर्ष और लोगों को मजाक उड़ाए, यह उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। बस तभी से उन्होंने अपने मन मे ठान लिया था कि वह अपने परिवार को अब एक सम्मानजनक जीवन देंगे।
ऐसा नहीं है कि गोविंद के सामने कोई मुश्किल नहीं आई। बल्कि गोविंद के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि गोविंद का परिवार एक साथ एक ही कमरे के मकान में रहता था। ऐसे में सिविल सर्विसेज के तैयारी करना बहुत मुश्किल था। लेकिन गोविंद रात-रात भर जागकर पढ़ते थे। वहीं घर वालों की भी जिद थी कि वो गोविंद को IAS बनाकर ही मानेंगे।
गोविंद की पढ़ाई के लिए उनके पिता ने उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन भी सिर्फ 30,000 रुपए में बेच दी थी। लेकिन इससे भी उनका काम नहीं चला तो गोविंद पार्ट टाइम कुछ बच्चों को मैथ्स का ट्यूशन पढ़ाने लगे। साल 2006 गोविंद ने पहली बार IAS की परीक्षा दी। अपने पहले ही प्रयास में गोविंद जायसवाल ने IAS परीक्षा में 48 वां रैंक हासिल किया था। हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वालों की श्रेणी में वह टॉपर रहे थे। 32 साल के गोविंद फिलहाल ईस्ट दिल्ली एरिया के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं।
अपने संघर्ष के दिनों के बारे में उनका कहना है कि अगर वो बुरे दिन नहीं होते तो वह सफलता और जिंदगी का मतलब कभी समझ नहीं पाते। वह दिन ही थे जिन्होंने मुझे मेहनत कराई और आज मैं यहां हूं।