बढ़ता तनाव जिम्मेदार
तेल की कीमतों में इजाफे की एक मुख्य वजह खाड़ी देशों के बीच तनाव का बढ़ना भी है। अमरीका और चीन के बीच छिड़े कारोबारी युद्ध के चलते भी कच्चा तेल की कीमतों की बढ़ोतरी केा बल मिला है। दूसरी तरफ ओपेक देश व रूस मिलकर कच्चे तेल की आपूर्ति को एक योजना के तहत बाधित कर रहे हैं। इसकी वजह से भी निर्यात प्रक्रिया में देरी हो रही है। इस मामले में भारत की चिंता तेल को लेकर है, क्योंकि भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार देश है और 80 फीसद से ज्यादा तेल आयात पर निर्भर है। भारत में तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ती है और जनता सरकार से ऊबने लगी है। जानकारी के मुताबिक भारत में आगामी 25 वर्षो तक ऊर्जा की मांग में सालाना 4.2 प्रतिशत की दर बढ़ोतरी की संभावना है। भारत में गैस की खपत भी 2030 तक तीन गुनी हो जाएगी। साथ ही दुनिया भर में औद्योगिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इसके बावजूद विश्व अर्थव्यस्था में तेल की कीमतें स्थिर बने रहने की उम्मीद इसलिए की जा रही थी, क्योंकि 2016 में सऊदी अरब और ईरान में चला आ रहा तनाव खत्म हो गया था। अमरीका और यूरोपीय संघ ने ईरान से परमाणु प्रतिबंध हटा लिए थे। इसलिए कहा जा रहा था कि अब ये दोनों देश अपना तेल बाजार में खपाने में तेजी लाएंगे। इस प्रतिस्पर्धा के चलते कच्चा तेल सस्ता मिलता रहेगा। लेकिन दोनों के बीच फिर से तनातनी की वजह से तेल की कीमतों में तेजी से इजाफा हो रहा है, जिसे रूस हवा देने में लगा है।
तेल की कीमतों में इजाफे की एक मुख्य वजह खाड़ी देशों के बीच तनाव का बढ़ना भी है। अमरीका और चीन के बीच छिड़े कारोबारी युद्ध के चलते भी कच्चा तेल की कीमतों की बढ़ोतरी केा बल मिला है। दूसरी तरफ ओपेक देश व रूस मिलकर कच्चे तेल की आपूर्ति को एक योजना के तहत बाधित कर रहे हैं। इसकी वजह से भी निर्यात प्रक्रिया में देरी हो रही है। इस मामले में भारत की चिंता तेल को लेकर है, क्योंकि भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार देश है और 80 फीसद से ज्यादा तेल आयात पर निर्भर है। भारत में तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ती है और जनता सरकार से ऊबने लगी है। जानकारी के मुताबिक भारत में आगामी 25 वर्षो तक ऊर्जा की मांग में सालाना 4.2 प्रतिशत की दर बढ़ोतरी की संभावना है। भारत में गैस की खपत भी 2030 तक तीन गुनी हो जाएगी। साथ ही दुनिया भर में औद्योगिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इसके बावजूद विश्व अर्थव्यस्था में तेल की कीमतें स्थिर बने रहने की उम्मीद इसलिए की जा रही थी, क्योंकि 2016 में सऊदी अरब और ईरान में चला आ रहा तनाव खत्म हो गया था। अमरीका और यूरोपीय संघ ने ईरान से परमाणु प्रतिबंध हटा लिए थे। इसलिए कहा जा रहा था कि अब ये दोनों देश अपना तेल बाजार में खपाने में तेजी लाएंगे। इस प्रतिस्पर्धा के चलते कच्चा तेल सस्ता मिलता रहेगा। लेकिन दोनों के बीच फिर से तनातनी की वजह से तेल की कीमतों में तेजी से इजाफा हो रहा है, जिसे रूस हवा देने में लगा है।
सरकार ने बढ़ाई एथेनॉल की आपूर्ति
2016 तक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के चलते भारत में इसकी कीमत पानी की एक लीटर बोतल की कीमत से भी नीचे आ गई थी। किंतु अब तेल की कीमतों में जिस तरह से उछाल आया है, उसके चलते सरकार भी मुश्किल में है। तेल की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने एथेनॉल की खरीद बढ़ाई है। इसके बावजूद मांग की तुलना में आपूर्ति कम होने से तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। आपको बता दें कि ओपेक देशों में कतर, लीबिया, सऊदी अरब, अल्जीरिया, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, कुवैत, वेनेजुएला, संयुक्त अरब अमीरात और अंगोला शामिल हैं। किंतु इधर खाड़ी के देशों में जिस तरह से तनाव उभरा है, उसके चलते अनेक देशों ने तेल का संग्रह शुरू कर दिया है। जिससे युद्ध की स्थिति में इस तेल का उपयोग किया जा सके जो तेल की कीमतों में उछाल की एक प्रमुख वजह है।
2016 तक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के चलते भारत में इसकी कीमत पानी की एक लीटर बोतल की कीमत से भी नीचे आ गई थी। किंतु अब तेल की कीमतों में जिस तरह से उछाल आया है, उसके चलते सरकार भी मुश्किल में है। तेल की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने एथेनॉल की खरीद बढ़ाई है। इसके बावजूद मांग की तुलना में आपूर्ति कम होने से तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। आपको बता दें कि ओपेक देशों में कतर, लीबिया, सऊदी अरब, अल्जीरिया, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, कुवैत, वेनेजुएला, संयुक्त अरब अमीरात और अंगोला शामिल हैं। किंतु इधर खाड़ी के देशों में जिस तरह से तनाव उभरा है, उसके चलते अनेक देशों ने तेल का संग्रह शुरू कर दिया है। जिससे युद्ध की स्थिति में इस तेल का उपयोग किया जा सके जो तेल की कीमतों में उछाल की एक प्रमुख वजह है।