हम अब जो आपको बताने और दिखाने जा रहे हैं वो इस सच्चाई की वास्तविकता को सामने रखता है और स्थिति की वास्तविकता को भी दर्शाता है। इस सच को सामने लेकर आया है पर्थ पी. बोराह नाम का हमारे देश का ही एक नागरिक! जिसने कुछ ऐसी ही परिस्थितियों को झेला और बर्दास्त किया लेकिन उसने अपनी आवाज़ उठाई। पर्थ की बाइक को कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा रोका गया और रोकने के बाद तीन मिनट तक उससे पूछताछ की गई, इन तीन मिनटों में वो पुलिसकर्मी उससे ड्राइविंग लाइसेंस और बाइक के अन्य पंजीक्रत कागजात के लिए पूछताछ करते रहे।
वीडियो में आप साफतौर पर देख सकते हैं कि पुलिस पेट्रोलिंग कार पर कोई रजिस्टर्ड नंबर प्लेट नहीं है। यह एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे कानून के रखवाले ही कानून को तोड़ने वाले बन जाते हैं। यह सबसे बड़ा सच है कि अगर आपके पास आपके वैद्य कागजात हैं और अगर आपने कोई नियम नहीं तोडा है तो कोई भी पुलिस कर्मी आपको ऐसे नहीं रोक सकता और न ही आपकी गाडी की चाबी निकाल सकता है। एडवोकेट पवन पारीख द्वारा लगाईं गई आरटीआई में जो जबाब दिया गया उससे यह साफ़ हो जाता है कि किसी भी बाइक या कार की इस तरह चाबी निकालना पूरी तरह से गलत है। किसी भी पुलिसकर्मी को, फिर चाहे वो किसी भी पद का हो, उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है।
लेकिन पर्थ के मामले में ऐसा नहीं हुआ, यहां पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ उसकी गाडी की चाबी निकाली बल्कि उससे बत्तमीज़ी तक की गई। यह मामला सिर्फ यहीं शांत नहीं हुआ, इस घटना के अगले दिन उसे पूछताछ के लिए पुलिस थाने बुलाया गया, जहां उसे पुलिसकर्मियों की ड्यूटी में व्यवधान डालने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद एक स्थानीय अदालत ने पर्थ को आईपीसी की धारा 294 और 353 सार्वजनिक रूप से आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने और एक लोक सेवक को अपने कर्तव्य निर्वाहन से रोकने के आरोप में 14 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया।