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Power game :  समुद्र में चीन को मात देने की तैयारी, नौसेना को मजबूत करने के लिए इस योजना पर काम शुरू

China पर बढ़त बनाए रखने के लिए भारतीय नौसेना ने Aircraft Carrier-3 पर काम शुरू किया।
Coronavirus Pandemic की वजह से एयक्राफ्ट करिअर-2 का परिचालन में विलंब हो सकता है।
Indian Navy दो नए स्क्वॉड्रन विकसित करने की रणनीति पर भी कर रहा है काम।

Jul 29, 2020 / 10:34 am

Dhirendra

Coronavirus Pandemic की वजह से एयक्राफ्ट करिअर-2 का परिचालन में विलंब हो सकता है।

नई दिल्ली। कोविद-19 महामारी ( Covid-19 ) के कारण सितंबर, 2020 में भारत के दूसरे विमानवाहक पोत के परिचालन में देरी की भरापाई के लिए नौसेना ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। अब गहरे समुद्र में चीन को मात देने के लिए भारत ने विमानवाहक पोत तीन ( Aircraft Carrier-3 ) की योजना पर अमल के लिए गंभीरता से विचार जारी है। इसके लिए दो नए स्क्वाड्रन पर काम तेजी से जारी है।
बता दें कि अमरीका ( America ) ने हाल ही में दक्षिण चीन सागर ( South China Sea ) में चीन की बेचैनी को बढा दी है। हिंद महागार ( Indian Ocean ) के अंडमान क्षेत्र में अमरीकी विमानवाहक पोत की मौजूदगी ने चीन की भारत की तरफ से परेशानी में डाल दिया है। ऐसा इसलिए समुद्री जंग में विमान वाहक मारक समूह ( Aircraft Carrier strike Group ) से बेहतर कुछ भी नहीं है। ऐसा इसलिए कि अभी तक एक ही दिन में 900 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय करने वाला कोई विमानवाहक पोत किसी भी देश के समुद्री बेड़े में नहीं है।
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इस बीच भारत ने बीजिंग को स्पष्ट संकेत देने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र ( IOR ) में अपने युद्धपोतों और पनडुब्बियों के बड़े पैमाने पर तैनात कर दिया है। इससे सीएसजी क्षेत्र में चीन पर निर्णायक बढ़त खोने का खतरा मंडराने लगा है। अब चीन ( China ) को भारत ( India ) पर पहले की बढ़त बरकरार रखने के लिए नए सिरे से कदम उठाने होंगे, नहीं तो भारत तीसरे विमानवाहक पोत पर काम पूरा होते ही चीन पर समुद्र में भी बढ़त हासिल कर लेगा।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कोचीन शिपयार्ड में बनाए जा रहे पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर ( IAC-I ) के “बेसिन ट्रायल” कोरोना महामारी से वजह से पटरी से उतर गया है। बेसिन ट्रायल के तहत 40,000 टन के युद्धपोत’ स्प्रेसलेंस, ट्रांसमिशन और शेफ्टिंग सिस्टम की जांच होनी थी।
IAC-I के बेसिन परीक्षणों को पहली बार जनवरी, 2003 में सरकारी स्तर पर मंजूरी दी गई थी। सितंबर 2021 में IAC-I के चालू होने के बाद ही इसे INS विक्रांत का नाम दिया गया है। 2020-2023 तक वाहक को पूरी तरह से चालू करने के लिए अब उड़ान परीक्षण शुरू किया जाएगा।
22,590 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाले IAC-I में देरी उस समय हुई जब जब चीन के पास पहले से ही दो विमान वाहक पोत हैं और दो विमानवाहक पोत ( Aircraft Carrier ) पर वो काम कर रहा है। चीन 2050 तक 10 विमानवाहक नौसेना बेड़े में शामिल करने की योजना पर काम कर रहा है। इन विमानवाहक पोतों को चीन अपने हितों को साधने के लिए मलक्का स्ट्रेट में तैनात कर सकता है।
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भारत वर्तमान में केवल 44,500 टन के INS विक्रमादित्य के साथ काम कर रहा है। नवंबर, 2013 में रूस से रिफर्बिश्ड एडमिरल गोर्शकोव को 2.33 बिलियन डॉलर में शामिल किया गया था। इसके डेक से ऑपरेट करने के लिए 45 मिग-29 Ks की खरीद पर एक और 2 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे।
जानकारी के मुताबिक नौसेना ( Indian Navy ) एक बार फिर चीन की तैयारियों को काउंटर करने के लिए 65,000 टन क्षमता वाली तीसरे विमानवाहक यानि IAC-II पर सरकार से इजाजत लेने पर जोर देगा। इस योजना पर काम मई, 2015 से लंबित है। IAC-II के लिए परमाणु-प्रणोदन से पहले नौसेना ने अनुमान लगाया था कि 45,000 करोड़ रुपए की लागत इस पर आएगी।
दूसरी तरफ भारत ने पिछले 6 दशकों में “फ्लैट-टॉप” के संचालन की जटिल कला में महारत हासिल कर चीन पर बढ़त बना ली है। भारत ने अपना पहला विमानवाहक पोत INS विक्रांत ( INS Vikrant ) की शुरुआत 1961 में किया था। भारत को इस बढ़त को खोना नहीं चाहिए।

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