न्यायपालिका की अवमानना मामले में दोषी करार दिए गए थे प्रशांत भूषण।
सोमवार को प्रशांत भूषण ( Prashant Bhushan on Indian Judiciary ) ने उन पर लगाए गए 1 रुपया का जुर्माना भरा।
उन्होंने अदालत से अलग और बड़ी पीठ द्वारा मामले की सुनवाई की अपील की।
Prashant Bhushan paid fine of Rupee 1 and filed review petition in SC
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायपालिका की अवमानना मामले में दोषी करार दिए जाने के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ( Prashant Bhushan on Indian Judiciary ) ने सोमवार को उन पर लगाया गया 1 रुपया का जुर्माना भी भरा है। भूषण को उनके ट्वीट के लिए न्यायपालिका के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक बयान देने पर सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की आपराधिक अवमानना के लिए दोषी ठहराया था।
इस मामले में प्रशांत भूषण ने बीते 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। भूषण ने इस याचिका में मांग की थी कि मूल आपराधिक अवमानना मामले को सुप्रीम कोर्ट में एक अलग और बड़ी पीठ सुने। सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को अवमानना मामले में दोषी ठहराते हुए उन पर एक रुपया का जुर्माना भी लगाया था। भूषण ने सोमवार को अदालत में 1 रुपया का जुर्माना जमा करा दिया है।
इस संबंध में मीडिया से चर्चा में भूषण ने बताया कि जुर्माना भरने का मतलब केवल यह नहीं है कि उन्होंने अदालत का फैसला मान लिया है। वह अपनी सजा की लड़ाई के लिए अब एक पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। भूषण द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई है कि दूसरे ट्वीट में धारणा बनती है, “पिछले छह वर्षों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय में फैसले लेने वाले न्यायाधीशों की भारतीय लोकतंत्र को विध्वंस करने में भूमिका थी। अंतिम चार प्रधान न्यायाधीशों (सीजेआई) की इसमें विशेष भूमिका रही है।”
इसके साथ ही भूषण ने अपनी 444 पन्नों की पुनर्विचार याचिका में दावा किया कि इस ट्वीट से अदालत की अवमानना नहीं होती है। बता दें कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बीते 31 अगस्त को भूषण को सजा सुनाई थी और मिश्रा दो सितंबर को सेवानिवृत्त हो गए थे।
उन्होंने अपने फैसले में कहा, “हम भूषण को इस न्यायालय में 15 सितंबर तक एक रुपया जुर्माना भरने की सजा सुना रहे हैं। अगर वह तय वक्त तक जुर्माना भरने में विफल रहते हैं तो उन्हें तीन महीने के साधारण कारावास से गुजरना होगा। इसके साथ ही इस अदालत में तीन साल की अवधि के लिए प्रैक्टिस करने से भी उन्हें वंचित कर दिया जाएगा”
भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अवमानना का दोषी ठहराए जाने के फैसले पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया और खुली अदालत में मौखिक सुनवाई की भी अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि उनका दूसरा ट्वीट सर्वोच्च न्यायालय और भारत के प्रधान न्यायाधीश की संस्था की गरिमा और अधिकार को कमजोर करता है। इसके साथ ही यह सीधे तौर पर कानून का भी उल्लंघन है।