अयोध्या में कोरियाई लोगों ने बनवाया रानी का स्मारक
दक्षिण कोरिया में इर्यान नाम के एक प्राचीन इतिहासकार ने “साम्गुक युसा ” नाम की एक किताब लिखी थी जिसमे उन्होंने कोरिया का अयोध्या के साथ रिश्तों का उल्लेख किया था यह उल्लेख कोरियन साहित्य और इतिहास में बार बार आया। इर्यान का कहना था कि लगभग 2,000 वर्ष पूर्व अयोध्या की राजकुमारी हो नौकायन करते हुए दक्षिण कोरिया पहुँच गई जहाँ काया राजवंश का शासन था। यह इलाका आजकल दक्षिण कोरिया के किम्हे शहर में हैं राजकुमारी को वहां के राजा किम सुरो से प्रेम हो गया और उन्होंने उनसे विवाह कर लिया। दक्षिण कोरियन सरकार ने अयोध्या में पूर्व रानी की स्मृति में एक स्मारक भी बनवा रखा है जिसको देखने हर वर्ष दक्षिण कोरिया के लोग आते हैं । कोरिया में कारक गोत्र के तक़रीबन साठ लाख लोग ख़ुद को राजा सुरो और अयोध्या की राजकुमारी के वंश का बताते हैं।इस पर यक़ीन रखने वाले लोगों की संख्या दक्षिण कोरिया की आबादी के दसवें हिस्से से भी ज़्यादा है।दक्षिण कोरियन साहित्य में अयोध्या को अयुता कहते हैं। अब जब दक्षिण कोरिया के शासक खुद को किम सुरों की 72 वीं संतति कहते हैं और मौजूदा राजपरिवार को अपना वंशज इसकी वजह भी है।
आज के राजासाहब भोजपुर में ढूँढ़ते हैं अपनी जड़ें
दरअसल एक दूसरे को चूमती मछलियों को जो राज चिन्ह मिश्रा परिवार ने पीढ़ियों से संजो कर रखा है वही राज चिन्ह कोरिया के राजा किम सुरों का भी था। इधर अयोध्या के राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा खुद को राजा साहब या पप्पू भईया के नाम से जाने जाते हैं। कोरिया के लोग जहाँ अयोध्या के मौजूदा राज परिवार का काया राजवंश का हिस्सा होने की वजह से सम्मान करते हैं ,वहीँ मिश्रा अपनी जड़े भोजपुर के जमींदार सदानंद पाठक में ढूँढ़ते हैं। मौजूदा राजपरिवार में राजा विमलेंद्र मोहन मिश्र के रूप में पुत्र ने कई पीढ़ियों के बाद जन्म लिया था।उनके पूर्व जो राजा हुए उनमे से अधिकतर को गोद लिया गया था।भारी सुरक्षा में रहने वाले अयोध्या के मौजूदा राजा सामान्य विद्यालय में ही पढ़े लिखे हैं।उनके दादा जगदम्बिका प्रताप नारायण सिंह बहुत बड़े शिकारी भी थे ।
राजा ददुआ ने कराया था राज सदन का निर्माण
1856 में जन्मे महाराजा ददुआ साहब ने अयोध्या में मौजूद राजसदन का निर्माण कराया था जिसमे मौजूदा राजपरिवार रहता है। जिस इलाके में यह महल है उसे श्रीनगर हाट भी कहते हैं। महाराजा दर्शन सिंह के परिवार की इस पीढ़ी में स्वर्गीय महारानी विमला देवी के दो पुत्र विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र और शैलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र हुए , बड़े होने की वजह से विमलेंद्र मोहन को राजगद्दी सौंपी गई लेकिन रियासत ख़त्म होने के बाद विमलेंद्र ने राजनीति की ओर रुख किया। उनके भाई शैलेन्द्र राजवंश का कामकाज आज भी देखते हैं। राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र के पुत्र यतीन्द्र मोहन मिश्र नामी साहित्यकार हैं। अभी दो साल पहले मौजूदा राजसदन को हेरिटेज होटल में तब्दील करने का प्रस्ताव राजा ने राज्य सरकार को भेजा था जिसे स्वीकार कर लिया गया है ।