scriptअच्छा लीडर वही जो सबको भी सुने और खुद को इको चैम्बर न बनने दे – प्रोफेसर हिमांशु राय | Pt Jhabarmall Smriti Vyakhanmala IIM Indore prof Himanshu Rai says | Patrika News
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अच्छा लीडर वही जो सबको भी सुने और खुद को इको चैम्बर न बनने दे – प्रोफेसर हिमांशु राय

– पंडित झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यानमाला- IIM Indore के निदेशक प्रोफेसर हिमांशु राय ने संकटकाल में लीडर के लिए बताए पांच आवश्यक सूत्र
– कविता—कहानी के लिए दिए गए सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार

Jan 11, 2021 / 10:39 pm

सुनील शर्मा

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जयपुर. प्रबंधन गुरु के नाम से पहचान रखने वाले भारतीय प्रबंध संस्थान-इंदौर के निदेशक प्रो. हिमांशु राय ने संकटकाल में कामयाब लीडर के लिए पांच सूत्रों का जिक्र करते हुए कहा कि अच्छे लीडर या नेतृत्व में चतुराई, कूटनीति, अनासक्ति, निष्पक्षता और विवेक का समावेश होना जरूरी होता है। यह भी जरूरी है कि लीडर खुद को इको चैम्बर में न रखे, भिन्न विचार वालों को भी सुने और अहम पर नियंत्रण रखे। अपने विचारों पर आसक्त न रहे बल्कि अपनी निंदा सुनने का साहस भी हो। विचार और चरित्र के संबंध को लेकर उन्होंने कहा कि जीवन में विचार से ही शब्द बनते हैं, शब्दों से कर्म बनता है, कर्म से आदत बनती है और अंत में आदत से ही चरित्र का निर्माण होता है।
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की मौजूदगी में प्रो. राय ने कोविड काल की चुनौतियों के तहत संकटकालीन नेतृत्व विषय पर सोमवार को यह व्याख्यान दिया। पत्रिका समूह के वर्चुअल माध्यम से आयोजित पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यान एवं सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार समारोह में उन्होंने पत्रिका समूह के परिशिष्टों में 2020 में प्रकाशित कविता और कहानी की श्रेष्ठ रचनाओं के विजेताओं को सम्मानित भी किया। लीडर बनने से लेकर अच्छा लीडर होने और भविष्य में लोगों की स्मृतियों में बने रहने तक के सफर को उन्होंने जीवन्त तरीके से समझाया। गीता के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…Ó श्लोक का जिक्र करते हुए कहा कि इसकी पहली पंक्ति तो सब जानते हैं लेकिन दूसरी पंक्ति ‘मां कर्मफलहेतु…’ को आत्मसात नहीं करते हैं। उस पंक्ति का सारर समझाते हुए कहा कि कर्म को फल की इच्छा के लिए नहीं करें, बल्कि सही काम ही करें। इस बात को याद नहीं रखा जाता। अपनी बात का सार समझाते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में कभी चीज उतनी अच्छी नहीं होगी, जितना चाहते हैं। लेकिन उतनी बुरी भी नहीं होती, जो न की जा सके। विचार अच्छे होंगे तो ही चरित्र सुदृढ़ होगा।
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परिस्थितियों ने बनाया गांधी को लीडर
उन्होंने कहा कि नेतृत्व ऐसी प्रक्रिया है, जो समूह को प्रोत्साहित करता है और खुद की जिम्मेदारी को भी समझता है। नेतृत्व के कई सिद्धान्त हैं। इनमें एक तो है आनुवांशिक। दूसरा परिस्थितिवश पैदा होने वाला। इसका उदाहरण हैं महात्मा गांधी। ट्रेन से धक्का मारने की परिस्थिति नहीं हुई होती तो वह लीडर नहीं बन पाते।

संजय की कमेंट्री पत्रकारिता का रूप
उन्होंने कहा कि गीता लीडरशिप को समझने का बेहतर माध्यम है। गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को बोले गए शब्द नहीं हैं बल्कि संजय ने धृतराष्ट्र को जो बताया वही गीता है। यह एक तरह से पत्रकारिता का ही रूप है।

हृदय, मन व बुद्धि का साथ जरूरी
उन्होंने संप्रेषण को लेकर कहा कि कहने और सुनने वाला समान हो, यह जरूरी नहीं है। उनके बीच संप्रेषण के लिए आवश्यक है कि संकटकालीन समय में हृदय, मन व बुद्धि साथ रहें। पत्रकारों के लिए तो संप्रेषण का महत्व और भी अधिक है। इसलिए हृदय मन व बुद्धि का साथ रहना उनके लिए तो बहुत जरूरी है।

पत्रिका की निष्पक्षता एक मिसाल
प्रो. राय ने पत्रिका की निष्पक्षता की मिसाल देते हुए कहा कि लोग पत्रिका को खास तौर पर निष्पक्षता के कारण ही पसंद करते हैं क्योंकि लोगों को विश्वास है कि इसमें कुछ आएगा तो दोनों पक्ष की बात अवश्य होगी।

प्रो. राय ने लीडरशिप के लिए ये बताए 5 सूत्र: चतुराई, कूटनीति, अनासक्ति, निष्पक्षता और विवेक
लीडर के लिए जरूरी है कि भिन्न विचारों को सुनकर निर्णय लें और सहनशीलता रखें। आपा नहीं खोएं, अहम पर नियंत्रण रखें। भविष्य में ऐसे लीडर ही याद रखे जाएंगे, जो अच्छा काम करते हैं। वे याद नहीं रखे जाएंगे, जो अभी अच्छे माने जाते हैं। लीडर के लिए निंदक की बात सुनना, सहनशीलता और दूरदर्शिता भी आवश्यक है।

पत्रिका चुनौतियों के बीच भी आगे रहा
पत्रिका समूह के डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि 2020 वर्ष जैसा रहा, वैसा वर्ष सदी में एक बार ही आता हैै। लेकिन पाठकों के प्रति धर्म ने पत्रिका को नया-नया करने की प्रेरणा दी। हर मौके पर पत्रिका आमजन के साथ खड़ा नजर आया और कई कीर्तिमान स्थापित किए। समारोह के समापन पर डिप्टी एडिटर गोविंद चतुर्वेदी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

कविता—कहानी के लिए इनका किया सम्मान

सृजनात्मक साहित्य पुरस्कारों के तहत पत्रिका समूह की ओर से कविता व कहानी के लिए सबसे अधिक राशि के पुरस्कार दिए जाते हैं। प्रथम पुरस्कार विजेताओं को 21 हजार रुपए व द्वितीय पुरस्कार विजेताओं को 11 हजार रुपए दिए जाते हैं। कहानी वर्ग में प्रथम रहने पर ‘जानना अभी बाकी है’ कहानी के लिए सीकर के संदीप मील और कविता वर्ग में प्रथम रहने पर ‘स्त्रियां और रंग’ कहानी के लिए कोटा के रामनारायण मीणा ‘हलधर’ को सम्मानित किया गया। कहानी वर्ग में दूसरे स्थान पर रही ‘अतीतजीवी’ कहानी के लिए जयपुर की पुष्पा गोस्वामी और कविता वर्ग में दूसरे स्थान पर रही ‘एक बार रोका तो होता’ कपिता के लिए दिल्ली के मैगसेसे अवार्ड विजेता अंशु गुप्ता को वर्चुअल तरीके से सम्मानित किया। ये कहानी व कविताएं पत्रिका समूह के परिशिष्टों में वर्ष 2020 के दौरान प्रकाशित हुई थीं।

लोगों के सवाल पर डॉ. राय के जवाब
– प्रश्न: सरकारें भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का कानून बना लेती हैं। इन काले कानूनों को रोकने के लिए जनता के पास क्या विकल्प हैं?
– उत्तर: जनता के पास आवाज है। ध्यान रखिए… देश, राज्य, समाज को नुकसान उन अल्पसंख्यक लोगों से नहीं होता जो गलत बात कर रहे हैं। उन बहुसंख्यक लोगों के कारण होता है विरोध करने के बजाय चुप रहते हैं। सरकार गलत कर रही है तो उसके खिलाफ आवाज उठाएं। दूसरे लोगों व न्यायपालिका के संज्ञान में लाएं ताकि उसे रोका जा सके। गांधीवादी तरीके से और मुस्कुराते हुए समझाएं लेकिन आवाज जरूर बुलंद करें। केवल कोसने से कुछ नहीं होगा।

– प्रश्न: नेतृत्व को निंदा पसंद नहीं है, क्या सोचते हैं?

– उत्तर: जिनका अच्छा नेतृत्व नहीं है, उन्हें ही निंदा पसंद नहीं होती। ऐसे लोग जिन्हें स्वयं पर विश्वास कम होता है। आत्मविश्वासी व्यक्ति जानता है कि उसे पूर्ण ज्ञान नहीं है। वह समझता है कि जितना ज्यादा ज्ञानार्जन करेंगे, उतना पता चलेगा कि मैं कितना अधूरा हूं। विद्या आपको महान नहीं बनाती बल्कि उससे व्यक्ति विनयशील बनता है। ऐसे व्यक्ति निंदा को भी आसानी से ग्रहण करते हैं और उससे सीखकर आगे बढ़ते जाते हैं। ज्ञानार्जन का सामथ्र्य होना ही चाहिए।
– प्रश्न: राज्य कोरोना से कैसे उबर सकते हैं?
– उत्तर: गीता में स्वधर्म की बात कही गई है। अपनी क्षमता को पूर्ण शक्ति के साथ आगे बढ़ाएंगे तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। सरकारों को भी इसे समझना चाहिए। आर्थिक सुदृढ़ता के लिए हर राज्य के पास कुछ न कुछ शक्तिक्षमता है। बस पहचाकर लगन के साथ काम करने की जरूरत है। मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों के पास पर्यटन है जो तेजी से इकोनॉमी बढ़ाने में अच्छा सहायक हो सकता है। ऐसे अन्य क्षेत्र भी होंगे। कोरोना काल के दौरान सप्लाइ पर ज्यादा फोकस रहा लेकिन अब डिमांड का समय है। सरकारों को चिंतन करना होगा कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के हाथ में धन पहुंचाएं। इससे डिमांड बढ़ेगी और उद्योगों को भी संबल मिलेगा। मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों में 90 फीसदी लघु उद्योग हैं, इन पर ध्यान देकर लोकल उत्पाद से आर्थिक तंगी दूर हो सकती है।

– प्रश्न: नेतृत्व का अधिक लोकतांत्रिक होना, उस संस्थान या विकास की रफ्तार को धीमा कर देता है, कैसे?
– उत्तर: संकटकाल में तत्काल निर्णय लेना होता है और ऐसे में प्रजातांत्रिक पहलुओं को थोड़े समय के लिए साइड में रखना पड़ता है। क्योंकि कई बार लोगों की संख्या (बहुमत) के आधार पर फैसले उत्पीडऩ होने की स्थिति को बढ़ा देते हैं। वक्त की नजाकत और लोगों की आवश्यकता के आधार पर निर्णय लिए जाते रहे हैं। लेकिन ऐसे फैसले केवल आपातकालीन स्थिति में ही सही मान सकते हैं। 6 जनवरी को अमरीका के वॉशिंगटन डीसी में जो हुआ, वह प्रजातंत्र पर आक्रमण था। जो जनतंत्र (डेमोक्रेसी) निर्णय लेने की क्षमता को धीमा करता है, वह सर्वव्यापी निर्णय नहीं हो सकता।
– प्रश्न: प्रारंभिक शिक्षा पद्धति में गीता का समावेश नहीं हुआ, क्या होना चाहिए।
– उत्तर: हर ग्रंथ, भाषा का अपना एक सौंदर्य है और जीवन को सही दिशा देने के लिए इनमें कुछ न कुछ समाहित है। प्रारंभ काल से ही जीवन में अपनाकर बाल्यकाल को सही दिशा दे सकते हैं। भारतीय शैक्षणिक व्यवस्था की प्रारंभिक शिक्षा में ग्रंथ, साहित्य के ज्ञान को शामिल करना ही चाहिए। फिर वह ग्रंथ किसी भी पंथ का हो। आइआइएम-इंदौर में हमने ऐसा ही किया है। ग्रंथ, साहित्य, दर्शन शास्त्र सभी को शिक्षा का हिस्सा बनाया गया है। किसी को पूरी तरह नकारने की बजाय बेहतर है कि उसमें जो अच्छा है वह अपना लिया जाए।
– प्रश्न: राजनीति और प्रबंधन एक-दूसरे के पूरक हैं?
– उत्तर: राजनीति यानि पावर-इन-एक्शन। आपके पास जो क्षमता है और इससे बेहतर क्या काम किया जा सकता है, यही सही मायने में राजनीति है। इसमें स्वधर्म सबसे महत्वपूर्ण है। दूसरों के बजाय पहले अपनी असली क्षमता और उत्तरदायित्व को पहचानें। उसी के अनुरूप कार्य करें। मानव होने का कर्तव्य यही है। जो यह नहीं कर सकता तो उसे मानव होने का अधिकार नहीं है। राजनेता अपनी पूरी क्षमता के साथ कर्म का निर्वहन करता है तो सही मायने में वह राजनीतिज्ञ होने का उत्तरादायित्व निभा रहा है। यही सही मायने में प्रबंधन भी यही है।

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