धवन ने कहा कि वह कोर्ट को यह बताना चाहते हैं कि इस मसले के शुरुआती दौर में 1994 में जस्टिस यूयू ललित अदालत की अवमानना के एक मामले में कल्याण सिंह की तरफ से पेश हुए थे। उन्होंने कहा कि ललित अयोध्या विवाद से जुड़े क्रिमिनल केस में कल्याण सिंह के वकील के रूप में पेश हो चुके हैं ऐसे में इस विवाद में उनका मौजूद रहना ठीक नहीं।
उन्होंने कहा, ‘मैं यह बताना चाहता हूं, हमें इस मसले की सुनवाई में कोई आपत्ति नहीं है। अब यह पूरी तरह से आपके ऊपर निर्भर है। मुझे खेद है, मैं ऐसा मसला उठाना नहीं चाहता था।’
धवन के कहने के बाद सीजेआई ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, इसमें खेद जताने वाली कोई बात नहीं है। आपने तो बस तथ्य बताया है। हालांकि, यूपी सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि जस्टिस यूयू ललित के पीठ में शामिल होने से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इस तरह का मामला उठाने के बाद जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस मसले से अलग कर लिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस बारे में जानकारी दी।
– संविधान पीठ पर भी उठा सवाल
– 3 जजों की पीठ के पास पहले था ये मामला
– अचानक 5 जजों की पीठ के सामने क्यों आया मामला
– बदलाव को लेकर कोई न्यायिक आदेश जारी नहीं किया गया
धवन के इन सवालों के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान पीठ का गठन और बदलाव सीजेआई यानी चीफ जस्टिस के अधिकार क्षेत्र में है। वो जरूरत के हिसाब से कर सकते हैं।