उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा संस्कृत के पास हुई। इसके बाद गांव के प्राथमिक विद्यालय गए। उन्होंने उनके गांव के निकट बोरो गांव में सरकारी शिक्षा के विरोध में राष्ट्रीय मिडिल स्कूल खोला गया था। वहां दाखिला लिया। यहीं से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। हाई स्कूल की शिक्षा इन्होंने ‘मोकामाघाट हाई स्कूल’ से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा ये एक पुत्र के पिता भी बन चुके थे। 1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी.ए. ऑनर्स किया। इसके बाद वे अगले ही साल एक स्कूल में प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए। इसके अगले साल 1934 में बिहार सरकार के अधीन ‘सब-रजिस्ट्रार’ का पद स्वीकार कर लिया। लगभग नौ साल तक इस पद पर सेवा दी।
देश की आजादी के बाद दिनकर 1952 में कांग्रेस के टिकट पर बिहार से राज्यसभा के लिए चुने गए। निरंतर तीन बार राज्यसभा जाने के बाद सरकार और परिस्थितियों से दुखी होकर 1964 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार रहे। भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा पद्मभूषण और भारतीय ज्ञानपीठ से भी नवाजे गए। दिनकर की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं – रेणुका (1935), रसवन्ती (1940), कुरुक्षेत्र (1964), सामधेनी (1947), नील कुसुम (1955), रश्मिरथी (1952), दिल्ली (1954), उर्वशी (1961), परशुराम की प्रतीक्षा (1963), हारे को हरि नाम (1970)। शोध समीक्षा लेख पुस्तक – संस्कृति के चार अध्याय – (1956), शुद्ध कविता की खोज – (1966)