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रिपोर्ट में खुलासा: राष्ट्रवादी फैला रहे हैं फेेक न्यूज, वजह ‘देश की तरक्की’!

देश में दक्षिणपंथी और राष्ट्रवाद से जुड़े ‘फेक न्यूज’ का प्रसार तेजी से होता है। इसके अलावा लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (वाट्सऐप, फेसबुक तथा ट्विटर) की मदद से बिना खबर की सत्यता जाने बड़े पैमाने पर उसका प्रसार करते हैं।

नई दिल्लीNov 13, 2018 / 10:46 am

अमित कुमार बाजपेयी

व्हाट्सअप पर फेक न्यूज से डॉक्टर्स परेशान, मरीजों को सच समझाने में होती परेशानी

नई दिल्ली। देश में दक्षिणपंथी और राष्ट्रवाद से जुड़े ‘फेक न्यूज’ का प्रसार तेजी से होता है। इसके अलावा लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (वाट्सऐप, फेसबुक तथा ट्विटर) की मदद से बिना खबर की सत्यता जाने बड़े पैमाने पर उसका प्रसार करते हैं। ये बातें फर्जी खबरों के प्रसार पर ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) के शोध में सामने आई हैं।
शोध के मुताबिक भारत में फेक न्यूज के वामपंथी स्रोत बमुश्किल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसके उलट फेक न्यूज के दक्षिणपंथी स्रोत का आपस में घनिष्ठ संबंध पाया गया। इससे दक्षिणपंथ के झुकाव वाली फेक न्यूज का प्रसार वामपंथ के मुकाबले तेजी से होता है। बीबीसी ने भारत के अलावा केन्या और नाइजीरिया में भी अध्ययन किया है।
राजनीतिक दलों में ज्यादा रुचि

शोध में यह भी कहा गया है कि जो फेक न्यूज के स्रोतों में रुचि रखते हैं, वह राजनीति और राजनीतिक दलों में और ज्यादा रुचि लेते हैं। शोध के अनुसार, लोग बिना सोचे-समझे फर्जी खबरें साझा करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लोग इस उम्मीद में संदेश आगे बढ़ाते हैं कि कोई दूसरा उनके लिए खबर की सत्यता जांचेगा।
 

धार्मिक आधार पर बंटवारा अधिक

शोध में यह भी पाया गया कि फर्जी खबरें शेयर करने के मामले में केन्या और नाइजीरिया के युवा जनजातीय या धार्मिक आधार पर कम बंटे हुए हैं, जबकि भारत में इस आधार पर बंटवारे का अंतर बड़ा है। विजुअल मीडिया (तस्वीरें, वीडियो, मीम्स) को लेखों की तुलना में फेक न्यूज का बड़ा माध्यम पाया गया।
ऐसे किया शोध

शोध को भारत के 10 शहरों, 40 लोगों से 200 घंटों से ज्यादा गहन साक्षात्कारों के आधार पर तैयार किया है। इसके अलावा 16,000 ट्विटर प्रोफाइल (3,70,999 संपर्क) और 3,200 फेसबुक पेज का भी विश्लेषण किया गया।
राष्ट्रनिर्माण की जिम्मेदारी निभा रहे!

इस शोध से पता चला कि भारत में लोग उस तरह के संदेशों को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक हिंसा पैदा कर सकते हैं। लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को शेयर करना अपना फर्ज समझते हैं। भारत की तरक्की, हिंदू शक्ति और हिंदुओं की खोई प्रतिष्ठा की दोबारा बहाली से जुड़े संदेश, तथ्यों की जांच किए बिना बड़ी संख्या में शेयर किए जा रहे हैं। ऐसे संदेशों को भेजने वालों को लगता है कि वो राष्ट्र निर्माण का काम कर रहे हैं।

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