आरएसएस के मुख्यपत्र पांचजन्य में कहा गया है कि तमाम बुद्धिजीविता के बावजूद हामिद आंसरी की बातें एक साम्प्रदायिक मुस्लिम नेता के भाषण जैसी लगती हैं।
नई दिल्ली। मुसलमानों के सशक्तीकरण, शिक्षा एवं सुरक्षा के बारे में
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान को निराशाजनक बताते हुए आरएसएस के मुख्यपत्र
पांचजन्य में कहा गया है कि तमाम बुद्धिजीविता के बावजूद हामिद आंसरी की यह बातें
एक साम्प्रदायिक मुस्लिम नेता के भाषण जैसी लगती हैं।
उपराष्ट्रपति हामिद
अंसारी एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं, और इस बार विवाद धर्म को लेकर है।
दरअसल, इसी माह की शुरूआत में उपराष्ट्रपति ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरात की
स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में मुस्लिमों की तकलीफें दूर करने के लिए
सरकार द्वारा सकारात्मक कदम उठाए जाने की जरूरत बताई थी, जिसके बाद राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र पांचजन्य के ताजा अंक में प्रकाशित एक आलेख में
किसी सांप्रदायिक मुस्लिम नेता की तरह बात करने के लिए अंसारी की जोरदार आलोचना की
गई है।
पांचजन्य में आरएसएस से जुड़े पत्रकार सतीश पेडनेकर ने लिखा है कि
मुस्लिमों को सरकार से अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान चलाने का अधिकार और हज सब्सिडी
जैसी कई सुविधाएं दी जाती हैं। उन्होंने यह भी लिखा है, स्वतंत्र भारत ने मुस्लिमों
की सांप्रदायिक पहचान के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, यह कल्पना से परे है कि इतनी
विशेष सुविधाएं दिए जाने के बाद भी मुस्लिमों की पहचान खतरे में है, दरअसल, यह
हिन्दुओं के लिए खतरा है, लेकिन तथाकथित सेक्युलर पार्टियों की ओर से उपराष्ट्रपति
प्रत्याशी होने के बावजूद हामिद अंसारी अपने मजहब से ऊपर नहीं उठ पाए।
आलेख
में आगे कहा गया है, क्या वह (हामिद अंसारी) यह संदेश देना चाहते हैं कि मुस्लिमों
को बहुसंख्यकों से कोई खतरा है? उन्होंने शायद दंगों की तरफ इशारा किया है, लेकिन
अधिकतर बार वे (दंगे) अल्पसंख्यकों की तरफ से ही शुरू किए गए, और जब बहुसंख्यक उस
पर प्रतिक्रिया में कुछ करते हैं, उसे मुस्लिमों की सुरक्षा से जोड़कर मुद्दा बना
दिया जाता है।
लेख में कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन आईएसआईएस, तालिबान, बोको
हराम का जिक्र करते हुए कहा गया है कि कोई मजहबी समुदाय अगर 1400 साल पुरानी बातों
को आज भी जस का तस लागू करने की इच्छा रखता हो तब वह आधुनिक कैसे हो सकता हैं।
इस्लाम में रेडिकल वे होते हैं जो 1400 वर्ष पुरानी बातों को ज्यों का त्यों लाना
चाहते हैं जैसे आईएस या तालिबान या बोको हराम। इस तरह से इस्लाम और आधुनिकता दो
ध्रुव हैं लेकिन यह बात अंसारी जैसे नेता मुसलमानों को कभी नहीं समझाते। सतीश
पेडनेकर का विचार है कि सच्चर कमेटी को मुस्लिमों के पिछड़ेपन के कारणों का भी
विश्लेषण करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि क्या उनकी (मुस्लिमों की) धार्मिक सोच,
हठधर्मिता, कड़ी धार्मिक परंपराएं और धर्मावलंबियों पर मौलवियों व मुल्लाओं की पकड़
उनके पिछड़ेपन का कारण नहीं हैं।
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था कि
आजादी के समय हुए बंटवारे से मुस्लिमों को काफी नुकसान हुआ, सो, आलेख में लिखा गया,
अंसारी भूल जाते हैं कि मुस्लिम बंटवारे के शिकार नहीं, कारण थे,आलेख में सतीश
पेडनेकर ने आगे लिखा है, अपने तरक्कीपसंद मुखौटे के बावजूद हामिद अंसारी का भाषण उन
मुस्लिम संगठनों के मांगपत्र जैसा लगता है, जो आत्मावलोकन या आत्म-विश्लेषण के लिए
तैयार नहीं हैं, कोई भी धर्म आधुनिक कैसे हो सकता है, अगर वह अपने 1,400 साल पुराने
नियमों को आज के युग में भी ज्यों का त्यों लागू करना चाहता है।