सरकार का लक्ष्य इस विधेयक के साथ अगले पांच वर्षों में सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं और मृत्यु दर को 50 फीसदी तक कम करना है। यह विधेयक साल 2017 से राज्यसभा में मंजूरी के लिए लंबित था। 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद ये विधेयक भी खत्म हो गया था। 17वीं लोकसभा में कुछ संशोधनों के साथ फिर पेश किया गया।
क्या विधेयक ले पाएगा कारगर रूप
विधेयक को लेकर सरकार ‘सड़क सुरक्षा, जीवन रक्षा’ की नीति पर काम करना चाहती है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों को इस विधेयक के कारगर रूप लेने में मुश्किलें दिखाई पड़ रही हैं, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में आज भी कई वाहन चालक बिना ड्राइविंग लाइसेंस के धड़ल्ले से वाहन चला रहे हैं। वहीं अवैध रूप से ट्रांसपोर्ट का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है इस पर कैसे रोक लगा पाएंगे?
दुर्घटना में घायल को कैशलेस इलाज
इस बिल में प्रावधान किया गया है कि सड़क पर हुई किसी दुर्घटना के शिकार लोगों के लिए सरकार कैशलेस उपचार का इंतजाम करेगी। ऐसे किसी मौके पर किसी को धन के इंतजाम का इंतजार नहीं करना होगा। इसके पीछे प्रमुख उद्देश्य यह है कि दुर्घटना के शिकार लोगों के लिए तुरंत मेडिकल सुविधा मिल जाने से बहुत-सी जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।
‘हिट एंड रन’ में मुआवजा बढ़ेगा
‘हिट एंड रन’ यानी टक्कर मार कर भाग जाने के मामले में भी न्यूनतम मुआवजे को बढ़ा दिया गया है। दुर्घटना में मौत होने की स्थिति में 25 हजार से बढ़ाकर दो लाख रुपए देने का प्रावधान किया गया है। गंभीर चोट होने की स्थिति में 12,500 रुपए से बढ़ा 50 हजार रुपए देने का प्रावधान किया है।
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सड़क पर चलने वाले हर व्यक्ति को मिलेगा बीमा कवर
विधेयक में मोटर वाहन दुर्घटना कोष बनाने की योजना भी शामिल की गई है। यह कोष भारत में सड़क का प्रयोग करने वाले सभी लोगों को स्वत: बीमा कवर प्रदान करेगा।
मदद करने वाले को कानूनी प्रक्रिया से राहत
दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को अगर कोई शख्स अस्पताल पहुंचाता है या प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराता है तो उस व्यक्ति पर किसी तरह की दीवानी या आपराधिक कार्रवाई नहीं होगी। पहले आम तौर पर दुर्घटना के शिकार हुए व्यक्ति की मदद करने वाले को पुलिस बार-बार पूछताछ के लिए बुला लेती थी। अब नए विधेयक में मददगार को किसी तरह की कानूनी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा।
नाबालिग की गलती पर अभिभावक को जेल
मोटर वाहन संशोधन विधेयक में सड़क सुरक्षा के लिए कई कड़े प्रावधान किए गए हैं। नाबालिग वाहन चालक अगर कोई दुर्घटना करता है तो ऐसी स्थिति में उसके अभिभावक या वाहन मालिक पर जुर्माना लगाया जाएगा। इसमें जुर्माने की राशि के अलावा तीन साल की सजा का भी प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय परिवहन नीति
केंद्र सरकार राज्य सरकारों की सलाह से राष्ट्रीय परिवहन नीति बना सकती है। इस नीति में सड़क, परिवहन के लिए एक योजनागत संरचना बनाई जाएगी।
जवाबदेही होगी तय
सड़क निर्माण की खामियों के कारण जो हादसे होते हैं, उसके लिए सड़क बनाने वाली कंपनी और इंजीनियरों की जवाबदेही तय की जाएगी।
नियम तोडऩे पर दंड बढ़ा
नशे में वाहन चलाने, बिना लाइसेंस के वाहन चलाने, गति सीमा से अधिक वाहन चलाने, बिना सीट बेल्ट, बिना हेलमेट वाहन चलाने, वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने पर जुर्माना राशि बढ़ा दी गई है। मोटर वाहनों से संबधित दंड शुल्क में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी।
लाइसेंस-पंजीकरण की बदलेगी प्रक्रिया
फर्जी वाहन लाइसेंस से बचने के लिए ऑनलाइन लर्नर लाइसेंस के साथ आवश्यक पहचान परीक्षण का प्रावधान किया है। डीलर द्वारा नए वाहनों के पंजीकरण कराने को बढ़ावा दिया है। वाहन चालकों की प्रशिक्षण प्रक्रिया मजबूत करने और व्यवसायिक वाहन चालकों की कमी को दूर करने के लिए ज्यादा ट्रेनिंग सेंटर खोले जाने का प्रावधान है।
2016 में हुई देश में कुल 4,80,652 सड़क हादसों में
सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय की ‘रोड एक्सीडेंट्स इन इंडिया रिपोर्ट’
प्रभावी व भ्रष्टाचार मुक्त परिवहन प्रणाली
– केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि विधेयक से सड़क सुरक्षा में सुधार होगा, आम नागरिकों को परिवहन विभाग से जुड़े काम करवाने में सुविधा होगी। ग्रामीण परिवहन और सार्वजनिक परिवहन मजबूत होगा। देश के कोने-कोने तक ऑटोमेशन, कम्प्यूटरीकरण और ऑनलाइन सेवाओं के जरिए संपर्क बढ़ेगा। विधेयक किसी भी रूप में राज्य सरकार की शक्तियों और प्राधिकरणों में हस्तक्षेप नहीं करता है। विधेयक से देश में प्रभावी, सुरक्षित और भ्रष्टाचार मुक्त परिवहन प्रणाली मिलेगी।
सड़क सुरक्षा के लिए नहीं है यह विधेयक
वहीं कांग्रेस सांसद बी.के. हरिप्रसाद ने कहा कि यह विधेयक सड़क सुरक्षा के लिए नहीं है। विधेयक में वाहनों के लिए जो उपकरण बताए गए हैं उन्हें कमेटी ने अनिवार्य न बनाते हुए राज्यों को लागू करने के लिए छोड़ दिया था। राज्यों ने भी इस बिल का विरोध किया है। वो चाहे महाराष्ट्र हो, तमिलनाडु, कर्नाटक हो या फिर आंध्र प्रदेश। विधेयक के जरिए परमिट का अधिकार सिर्फ केंद्र को दिया जा रहा है जिससे प्राइवेट बस कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा सके।