script#संसदकेस्टार: क्या अब कमजोर पड़ जाएगी सूचना के अधिकार की धार? | #SansadKeStar: The Right to Information Amendment Bill 2019 | Patrika News

#संसदकेस्टार: क्या अब कमजोर पड़ जाएगी सूचना के अधिकार की धार?

locationनई दिल्लीPublished: Aug 17, 2019 09:40:07 pm

Submitted by:

Prashant Jha

आरटीआइ संशोधन बिल 2019
कानून की विसंगतियों को दूर करना जरूरी – सरकार
विपक्ष का आरोप कानून कमजोर करने का तरीका

RTI

#संसदकेस्टार: क्या अब कमजोर पड़ जाएगी सूचना का अधिकार की धार?

नई दिल्ली। सूचनाओं को दबा-छुपा कर ही सरकारी तंत्र आम लोगों का शोषण करता रहा है, पर 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून ला कर इन सभी सूचनाओं पर आम लोगों को पूरा अधिकार दे दिया गया। कानून का पालन करवाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से सूचना आयुक्तों को दी गई। सूचना आयोग और इन आयुक्तों को अधिकार सम्पन्न के साथ ही स्वायत्त बनाने के लिए भी सारे उपाय किए गए।

कई अहम बदलाव किए गए

अब संसद के बीते सत्र में सरकार ने आरटीआइ संशोधन बिल पास करवाया है। इसमें इन आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तों में कई अहम बदलाव कर दिए गए हैं। सरकार का दावा है कि यह पुरानी कमियों को दूर करने के लिए किया गया है जबकि आरटीआइ कार्यकर्ता और विपक्ष का आरोप है कि यह इस कानून को कमजोर करने का तरीका है।

क्या बदलाव हुए

कार्यकाल
पहले: कानून में प्रावधान था कि केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों के सभी आयुक्तों व मुख्य आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल का होगा।

अब: आयुक्तों के कार्यकाल के बारे में केंद्र सरकार अधिसूचना जारी करेगी।

मतलब: आयुक्तों का कार्यकाल सरकार के हाथ में।

वेतन
पहले: केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों का वेतन केंद्रीय चुनाव आयुक्त के बराबर और मुख्य सूचना आयुक्त का मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर था।

अब: ये प्रावधान हटा दिए गए हैं। वेतन के संबंध में फैसला केंद्र सरकार करेगी।

मतलब: वेतन के अनुरूप ओहदा भी कम हो जाएगा।

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दोबारा नियुक्ति

पहले: राय या केंद्रीय सूचना आयोग के किसी भी आयुक्त या मुख्य आयुक्त को एक कार्यकाल के बाद दोबारा आयुक्त नहीं बनाया जा सकता था।

अब: यह प्रावधान समाप्त।

मतलब: सरकार की नजर में अ‘छा काम किया तो दोबारा बन सकते हैं।

पुराने पद के लाभ

पहले: अगर पिछली सरकारी नौकरी से कोई पेंशन या लाभ मिलता है तो वह मौजूदा वेतन से घटा दिया जाता था।

अब: यह प्रावधान हटा दिया है।

मतलब: सरकारी सेवा से आने वालों को ’यादा लाभ।

आरटीआइ के असली रक्षक

जब आरटीआइ आवेदन करते हैं तो इसका जवाब सरकारी अधिकारी को ही देना होता है। यह उसी विभाग का होता है, जहां से आपने सूचना मांगी है। जवाब ठीक नहीं हो तो आप पहली अपील करते हैं। यह अपील अधिकारी भी उसी विभाग का होता है, पर यहां न्याय नहीं मिले तो सूचना आयोग में जाते हैं। ये उस विभाग से स्वायत्त होते हैं व जवाब नहीं देने के लिए उन पर आर्थिक जुर्माना लगा सकते हैं।

केंद्रीय कार्मिक मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि कानून की विसंगतियों को दूर करना जरूरी था।

आशंका: कानून को कमजोर करने के लिए यह संशोधन किया गया है।

केंद्रीय कार्मिक मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का जवाब: पुराने प्रावधानों के मुताबिक सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयोग के बराबर था, यानी यह सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर हो जाता था। जबकि उनके फैसलों को हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, इस विसंगति को दूर करना जरूरी था।

आशंका: सरकार आयोगों की स्वायत्तता समाप्त करना चाहती है।

जवाब: सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं। यह समान सेवाओं की शर्तों में समानता लाने के लिए किया गया है। सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता का प्रावधान करने वाली इस कानून की धारा 12(4) में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

कमजोर बनाने के लिए किया संशोधन

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि सूचना आयोग के कई फैसले पीएम मोदी को बहुत चुभे हैं। उनकी शैक्षणिक डिग्री से लेकर नोटबंदी से पहले इसको लेकर चेताने वाली आरबीआइ की बैठक का ब्योरा सार्वजनिक करने को कहा है। काले धन व फर्जी राशन कार्ड पर पीएम के दावों को गलत साबित करने वाली सूचनाएं भी इसके आदेश से आई हैं। ऐसे में इसे कमजोर करने के लिए यह संशोधन किया गया है।

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स्वतंत्र रूप से काम कैसे करेंगे?
आरटीआइ कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज का कहना है कि लोग भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए इसका सहारा लेते हैं। अक्सर सरकारें सूचना देने में आनाकानी करती हैं, इसलिए आयोग का स्वतंत्र, शक्तिशाली, निष्पक्ष व निडर होना जरूरी है। इनका वेतन, कार्यकाल व सेवा शर्तें सरकार के हाथ में होंगी तो ये स्वतंत्र रूप से काम कैसे करेंगे?

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