संविधान पीठ का इस मामले में कहना है कि प्रवेश स्तर पर आरक्षण कोई समस्या नहीं है। इसके बाद मान लीजिए कोई एक व्यक्ति आरक्षण की मदद से किसी राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है। इसके बाद भी उसके परिवार के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए पिछड़ा मानना कितना तर्कपूर्ण है। इससे तो उसका उसका वरिष्ठताक्रम तेजी से बढ़ेगा। जबकि योग्य लोग पीछे रह जाएंगे।
संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, आरएफ नरीमन, एसके कौल और इंदू मल्होत्रा भी शामिल थे। दिनभर चली सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंह, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी और पीएस पटवालिया सहित कई वकीलों ने अजा, अजजा समुदायों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया। इन अधिवक्ताओं ने मांग की कि बड़ी पीठ द्वारा 2006 के एम नागराज मामले के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।
पहले की पीठ ने रखी थी स्टेटस रिपोर्ट की शर्त
आरक्षण देने से पहले स्टेटस रिपोर्ट वर्ष 2006 के फैसले में कहा गया था कि अजा, अजजा समुदायों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले राज्यों पर इन समुदायों के पिछड़ेपन पर गणनायोग्य आंकड़े और सरकारी नौकरियों तथा कुल प्रशासनिक क्षमता में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है।
वेणुगोपाल और अन्य वकीलों ने आरोप लगाया कि फैसले ने इन समुदाय के कर्मचारियों की पदोन्नति को लगभग रोक दिया है। इस पर वरिष्ठ वकील और पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण तथा वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पदोन्नति में आरक्षण का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह समानता के अधिकार और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर