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सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखेत हुए यह फैसला सुनाया है। केरल हाईकोर्ट के जस्टिस एनवी रमण और जस्टिस एमएम शांतनगौदर की बेंच ने भी मुस्लिम पुरुष और हिन्दू महिला की शादी के बाद जन्मे बच्चों को वैध बताते हुए पिता की संपत्ति में अधिकार होने की बात कही थी।
क्या है मामला…
बता दें कि केरल के मुस्लिम पुरुष इलियास और हिन्दू महिला वल्लीअम्मा एक दूसरे से प्यार करते थे। दोनों ने घर वालों से छुपकर शादी कर ली। शादी के कुछ साल बाद दोनों का बेटा हुआ शमशुद्दीन। शमशुद्दीन ने बड़े होने के बाद अपने पिता की संपत्ति पर अपना हक मांगा है, लेकिन पिता के घरवालों ने उसे संपत्ति में हक देने से इनकार कर दिया है। शमशुद्दीन के चचेरे भाइयों ने कोर्ट में कहा कि उसके माता-पिता ने कानूनी तरीके से शादी नहीं की थी। उसने कहा कि शादी के वक्त शमशुद्दीन की मां हिन्दू थी। इसलिए उसे संपत्ति में हक पाने का कोई अधिकार नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
वहीं, दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और केरल हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर मुस्लिम और हिंदू महिला-पुरुष के बीच वैध तरिके से विवाह नहीं हुआ है तो शादी खत्म होने के बाद पत्नी को मेहर पाने का हक तो होगा, लेकिन उसे पति की संपत्ति में अधिकार पाने का अधिकार नहीं हैं। लेकिन उन दोनों के शादी से जन्मा बच्चा उसी तरह से पिता की संपत्ति में हक पाने का अधिकार रखता है जैसा किसी सामान्य शादी से जन्मा बच्चा रखता है।