आतंक के खिलाफ सैन्य बलों को मिले ज्यादा अधिकार
बता दें कि अदालत में जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस उदय यू ललित की पीठ ने सुनवाई की। इस दौरान केंद्र सरकार ने अफ्सपा लगे इलाके में सैन्य बलों के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किए जाने के खिलाफ इन याचिकाओं का समर्थन किया। इस बाबत केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले हमारे सैनिकों के हाथ बंधे न हो। इस पर अदालत ने कहा कि आखिर आपको किसने रोका है, ऐसी व्यवस्था कायम करने से। केंद्र सरकार को कौन रोक रहा है। इन मुद्दों पर आपको विचार-विमर्श करना है, अदालत को नहीं।
SC ने फांसी की सजा को बताया कानूनन वैध, कहा- समाज में कम नहीं हुए अपराध
क्या है अफ्सपा
आपको बता दें कि आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सैन्य बलों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं। वर्ष 1958 में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) को संसद में पारित कराया गया था। शुरु में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किये गये थे, हालांकि 2004 में मणिपुर के कई हिस्सों से इस कानून को हटा लिया गया है। तो वहीं जम्मू-कश्मीर में इस कानून को 1990 में लागू किया गया था। बता दें कि इस कानून के तहत सैन्य बलों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं। जिसमें किसी भी व्यक्ति को बिना कोई वारंट के तशाली या गिरफ्तार करने का विशेषाधिकार है, विरोध करने पर उसे जबरन गिरफ्तार करने का पूरा अधिकार,संदेह के आधार पर तलाशी लेने का अधिकार,कानून तोड़ने पर फायरिंग का अधिकार आदि शामिल है।