इस मंदिर के पुनिनिर्माण को लेकर कांग्रेस में दो धड़े बंट गए थे। एक धड़ा पंड़ित नेहरू का था दूसरा सरदार वल्लभ भाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद का। कांग्रेस नेता और नेहरू सरकार में मंत्री केएम मुंशी सोमनाथ का पुनर्निर्माण करना चाहते थे। वे लगातार इस मुद्दे को उठाते रहते थे। 12 नवंबर 1947 को पटेल जूनागढ़ गए सोमनाथ पुनर्निर्माण की घोषणा कर डाली।
पटेल के निधन के बाद मुंशी पर जिम्मेदारी बढ़ गई। उन्हें पता था कि नेहरू पुनिनिर्माण की अनुमति नहीं देंगे। लिहाजा उनहोंने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सामने अपनी बात रखी। राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी।
इस बात की जानकारी जब पीएम नेहरू को लगी तो उन्होंने राष्ट्रपति से पुनिनिर्माण कार्य में ना जाने की बात कही। नेहरू का मानना था कि ये काम उनके ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ के विचारों से मेल नहीं खाता था।
क्योंकि नेहरू मानते थे कि सरकार और धर्म को अलग-अलग रखने की जरूरत है। लेकिन राजेंद्र प्रसाद नहीं रुके और जब उन्होंने सोमना मंदिर का पुनिनिर्माण काम शुरू किया तो कहा कि दुनिया देख ले – विध्वंस से निर्माण की ताकत बड़ी होती है। प्रसाद ने यह भी कहा कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और चर्च, मस्जिद, दरगाह और गुरुद्वारा सभी जगह जाते हैं।
अब ऐसा ही विवाद पीएम मोदी के राम भूमि पूजन से पहले भी हुआ। जब एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ये लोकतंत्र की हत्या है। उन्होंने इससे पहले कहा था कि अगर पीएम मोदी राम मंदिर भूमि पूजन में जाना चाहते हैं तो वे प्रधानमंत्री की बल्कि नरेंद्र मोदी बनकर जाएं।
वहीं जानकारों की मानें तो धर्मनिपेक्षता की दो परिभाषा हो सकती हैं। एक सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और दूसरा राजकाज में किसी धर्म विशेष को तवज्जो ना देना। हालांकि पीएम मोदी के अलावा पूर्व पीएम भी मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारों में जा चुके हैं।