scriptRam Mandir Ayodhya: मोदी के पूजन से खतरे में तो नहीं धर्मनिरपेक्षता? जिससे नेहरू ने बनाई दूरी, नमो ने किया वही काम | Secularism is in danger after PM Modi ram mandir bhoomi pujan Nehr wont involve | Patrika News

Ram Mandir Ayodhya: मोदी के पूजन से खतरे में तो नहीं धर्मनिरपेक्षता? जिससे नेहरू ने बनाई दूरी, नमो ने किया वही काम

locationनई दिल्लीPublished: Aug 05, 2020 08:54:25 pm

PM Modi के Ram Mandir Bhoomi Pujan करने से कहीं खतरे में तो नहीं पड़ गई धर्मनिरपेक्षता
Pandit Jawahar Lal Nehru ने जिससे बनाई दूरी, मोदी ने किया वही काम
Somnath Mandir के पुननिर्माण के दौरान नेहरू ने की थी राष्ट्रपति को रोकने की कोशिश

PM Narendra Modi done Ram Mandir Bhoomi pujan

पीएम मोदी के राम मंदिर भूमि पूजन से खतरे में तो नहीं धर्मनिरपेक्षता?

नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण ( Ram Mandir Bhoomi Pujan ) की नींव पड़ने के साथ आखिरकार वो सपना पूरा हुआ जिसका इंतजार पिछले 490 वर्षों से किया जा रहा था। पीएम मोदी ( pm modi ) ने भूमि पूजन के साथ ऐतिहासिक लम्हे का पूरे देशको गवाह बनाया। लेकिन उनके इस भूमि पूजन के साथ ही कई सवाल भी उठ खड़े हुए। क्या पीएम मोदी ने भूमि पूजन कर देश की धर्मनिपेक्षता ( Secularism ) को खतरे में तो नहीं डाल दिया। दरअसल इतिहास एक बार पहले भी इस तरह के हालातों का गवाह बन चुका है, जब तात्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ( Jawahar Lal Nehru ) ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ( Rajendra Prasad ) को सोमनाथ मंदिर के पुरनिर्माण मे जाने से रोकने की कोशिश की थी।
दरअसल राष्ट्रपति को सोमनाथ मंदिर में जाने से रोकने के पीछे तात्कालीनी पीएम नेहरू की खास वजह थी। लेकिन इतिहास ने के भार फिर खुद को दोहराया और पीएम मोदी ने शायद वैसा ही कुछ किया जो पंडित नेहरू उस समय नहीं चाहते थे। आईए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
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गुजरात का सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। हालांकि राम मंदिर की तरह 1026 ईसी में तुर्की के शासक मोहम्मद गजनी ने बेहद धनी इस मंदिर को लूट लिया था। इस दौरान गजनी की सेना के दुस्साहस से शिवलिंग को भी नुकसान पहुंचाया था। हालांकि आजादी के बाद इस मंदिर का पुननिर्माण किया गया।
ये था पूरा विवाद
इस मंदिर के पुनिनिर्माण को लेकर कांग्रेस में दो धड़े बंट गए थे। एक धड़ा पंड़ित नेहरू का था दूसरा सरदार वल्लभ भाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद का। कांग्रेस नेता और नेहरू सरकार में मंत्री केएम मुंशी सोमनाथ का पुनर्निर्माण करना चाहते थे। वे लगातार इस मुद्दे को उठाते रहते थे। 12 नवंबर 1947 को पटेल जूनागढ़ गए सोमनाथ पुनर्निर्माण की घोषणा कर डाली।
इस घोषणा के बाद गांधी ने भी ये कहते हुए सहमित दी कि इस निर्माण मे सरकार की धन खर्च नहीं होगी बल्कि लोगों का सहयोग लिया जाएगा। इसके लिए एक ट्रस्ट बना और इसकी जिम्मेदारी केएम मुंशी को सौंपी गई।
पटेल के निधन के बाद मुंशी पर जिम्मेदारी बढ़ गई। उन्हें पता था कि नेहरू पुनिनिर्माण की अनुमति नहीं देंगे। लिहाजा उनहोंने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सामने अपनी बात रखी। राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी।
आइडिया ऑफ इंडिया की सोच से अलग
इस बात की जानकारी जब पीएम नेहरू को लगी तो उन्होंने राष्ट्रपति से पुनिनिर्माण कार्य में ना जाने की बात कही। नेहरू का मानना था कि ये काम उनके ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ के विचारों से मेल नहीं खाता था।
विध्वंस से निर्माण की ताकत बड़ी होती है
क्योंकि नेहरू मानते थे कि सरकार और धर्म को अलग-अलग रखने की जरूरत है। लेकिन राजेंद्र प्रसाद नहीं रुके और जब उन्होंने सोमना मंदिर का पुनिनिर्माण काम शुरू किया तो कहा कि दुनिया देख ले – विध्वंस से निर्माण की ताकत बड़ी होती है। प्रसाद ने यह भी कहा कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और चर्च, मस्जिद, दरगाह और गुरुद्वारा सभी जगह जाते हैं।
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पीएम मोदी के साथ भी ऐसा ही विवाद
अब ऐसा ही विवाद पीएम मोदी के राम भूमि पूजन से पहले भी हुआ। जब एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ये लोकतंत्र की हत्या है। उन्होंने इससे पहले कहा था कि अगर पीएम मोदी राम मंदिर भूमि पूजन में जाना चाहते हैं तो वे प्रधानमंत्री की बल्कि नरेंद्र मोदी बनकर जाएं।
धर्मनिरपेक्षता दो परिभाषा
वहीं जानकारों की मानें तो धर्मनिपेक्षता की दो परिभाषा हो सकती हैं। एक सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और दूसरा राजकाज में किसी धर्म विशेष को तवज्जो ना देना। हालांकि पीएम मोदी के अलावा पूर्व पीएम भी मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारों में जा चुके हैं।
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