दरअसल, ज्यादातर राज्य फ्री वैक्सीन के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है वैक्सीनेशन से पडऩे वाला आर्थिक बोझ। राज्य इंतजार कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इस आर्थिक बोझ को कितना अपने कंधे पर लेगी व कितना राज्यों के कंधे पर डालेगी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक राज्यों को टीकाकरण में आने वाले खर्च का कुछ हिस्सा देना पड़ सकता है। केंद्र निजी बाजार में टीकों की बिक्री की अनुमति भी दे सकता है, जिससे लोग और सरकारें सीधे टीका खरीद सकती हैं।
केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने कहा कि राज्य नि:शुल्क टीकाकरण के लिए 3,000-4,000 करोड़ खर्च करने के लिए तैयार है, ताकि टीकाकरण के बाद अर्थव्यवस्था वापस जल्द सामान्य हो सके। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने टीकाकरण की योजना तैयार कर रही है। सरकार की कोशिश है कि दूसरे मद का पैसा वैक्सीनेशन में इस्तेमाल कर रुकी अर्थव्यवस्था को गति दी जाए, जिससे वापस पैसे की रिकवरी हो सके।
राज्यों को 15 वें वित्त आयोग की सिफारिशों का भी इंतजार है। फरवरी में केंद्रीय बजट में कुछ राहत की उम्मीद है। स्वास्थ्य के लिए बड़ा बजट मिलने की उम्मीद हो रही है। वहीं, पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन का मानना है कि अगर राज्यों के ऊपर वैक्सीनेशन का खर्च डाला गया तो इंफ्रास्ट्रक्चर की फंडिंग बिगड़ेगी।
छत्तीसगढ़ –
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का कहना है, कोरोना वैश्विक महामारी है। यह पूरे देश की आपदा है, इसलिए केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी के लिए निःशुल्क टीकाकरण की व्यवस्था करवाए। अभी हेल्थ केअर, इसके बाद फ्रंट लाइन, फिर 50 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों को वैक्सीन लगेगी। जब केंद्र टीके लगा रहा है तो फिर राज्य द्वारा खरीदी का सवाल ही नहीं उठता।
मध्यप्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य मोहम्मद सुलेमान का कहना है, केंद्र सरकार अभी वैक्सीन उपलब्ध करा रही है। इसके बाद की स्थिति केंद्र की गाइड लाइन के हिसाब से बाद में स्पष्ट हो पाएगी। तीसरे फेस में केंद्र और राज्य की कुछ शेयरिंग हो सकती है।
राजस्थान चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के टीकाकरण निदेशक डॉ. लक्ष्मण सिंह ओला का कहना है, अभी हमारे पास तीन चरणों की ही कार्ययोजना है। उसमें निशुल्क लगाए जा रहे हैं। चार चरणों के बाद निशुल्क लगाए जाएंगे या सशुल्क लगाए जाएंगे, इसको लेकर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।