आपको बता दें कि एसके शर्मा को डीआरडीओ की एक लैब से 21 नवंबर साल 1994 में गिरफ्तार किया गया था। जिस वक्त उनकी गिरफ्तारी हुई थी, उस समय उनकी उम्र 34 साल थी। एसके शर्मा की पत्नी किरण शर्मा बताती हैं कि उनके पति की गिरफ्तारी के बाद से ही उनके पूरे परिवार की जिंदगी ही बदल गई और वो पीड़ा व बदनामी के जिस दौर से गुजरे उसे बताना मुश्किल है। शर्मा ठेका मजदूर से देशद्रोही बन गए।
एसके शर्मा की गिरफ्तारी से दबाव में था परिवार
दरअसल, एसके शर्मा इस जासूसी कांड के एक अन्य आरोपी के.चंद्रशेखर के करीबी दोस्त थे, जिनकी हाल ही में मौत हो गई। एसके शर्मा की बेटी मोनिशा शर्मा कहती हैं ‘मेरे पिता और चंद्रशेखर अंकल वर्ष 1980 से पहले से एक दूसरे को जानते थे। दोनों की मुलाकात ईसीए क्लब में अक्सर होती थी।’ एसके शर्मा का कहना था कि वह के. चंद्रशेखर के जरिए ही मालदीव की महिला मरियम नाशिदा के करीब आए। चंद्रशेखर के कहने पर उन्होंने बस इतना किया कि नाशिदा की बेटी के नामांकन में मदद की। उनकी पहचान एक स्कूल की प्रधानाध्यापिका से था, जिससे उन्होंने नामांकन के लिए बात की और नामांकन हो गया।
बेटियों को छोड़ना पड़ गया था स्कूल
इसके कुछ ही महीनों के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया और उनके परिवार पर निगरानी रखी जाने लगी। उस वक्त उन्हें इसरो का पूरा मतलब भी पता नहीं था। एसके शर्मा ने कहा था कि उन्हें आरोप स्वीकार करने के लिए प्रताड़ित किया गया था। उन्हें थर्ड डिग्री भी दी गई। वो अपनी बीवी और तीन बेटियों के साथ बहुत खुशहाल जिंदगी जी रहे थे, लेकिन उनका नाम खराब हो गया, जब वे जेल से बाहर आए तो उनकी दो कारें मुकदमा लडऩे में बिक चुकी थीं। उन्हें अपनी बेटियों को स्कूल से निकालना पड़ा क्योंकि उन्हें परेशान किया जाता था।
क्या था इसरो जासूसी कांड
दरअसल, इसरो जासूसी कांड की शुरुआत अक्टूबर 1994 में उस समय हुई, जब मालदीव की मरियम नाशिदा को तिरुवंतपुरम से गिरफ्तार किया गया। मरियम पर आरोप लगे कि उनके पास इसरो के रॉकेट इंजन की कुछ तस्वीरें हैं, जिसे वो पाकिस्तान को बेचने जा रही थीं। इस पूरे मामले में जब इसरो के क्रायोजेनिक इंजन परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिक नांबी नारायणन को नवंबर में गिरफ्तार किया गया तो खलबली मच गई। नारायणन के साथ इसरो के उप निदेशक डी शशिकुमारन को भी गिरफ्तार किया गया था।
जनवरी 1995 में इसरो वैज्ञानिकों सहित सभी को जमानत मिल गई लेकिन, मालदीव की दोनों नागरिकों को जेल में ही रखा गया। साल 1996 में सीबीआई ने केरल की अदालत में रिपोर्ट फाइल करके इस जासूसी केस को झूठा करार दिया और फिर सभी आरोपी रिहा हो गए। लेकिन अभी मामले में जबरदस्त मोड़ आना बाकि था। इसी साल जून में केरल सरकार ने तय किया कि वह मामले की दोबारा जांच कराएगी, लेकिन फिर से साल 1998 में सीबीआई ने ये स्पष्ट कर दिया कि जासूसी के मामले का कोई आधार नहीं है। शर्मा ने केरल सरकार से 55 लाख रुपए का मुआवजा मांगा था। मौत से पहले शर्मा के लिए राहत की बात बस यहीं रही कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया था।