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शनि में समा जाएगा अंतरिक्ष यान कैसिनी, 20 साल बाद 15 सितंबर को खत्म होगा अभियान

इसकी सतह पर द्रव अवस्था में मीथेन और ईथेन के सागर हैं।
 
 

नई दिल्लीSep 05, 2017 / 07:06 pm

Prashant Jha

space shuttle, cassini
 बेंगलूरु: शनि ग्रह के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए 20 साल पहले भेजा गया अंतरिक्ष यान कैसिनी लगभग 13 साल के गहन अन्वेषण के बाद आगामी 15 सितंबर को शनि में ही समा जाएगा। वैज्ञानिकों के लिए यह बेहद अहम क्षण होगा। इस अंतरिक्षयान का प्रक्षेपण 15 अक्टूबर 1997 को किया गया और लगभग 7 साल की यात्रा पूरी कर यह 1 जुलाई
2004 को शनि ग्रह की कक्षा में स्थापित हो गया। उसके बाद पिछले 13 वर्ष के दौरान इस यान ने कई तस्वीरें और अहम जानकारियां भेजी। भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर रमेश कपूर (सेनि) ने बताया कि कैसिनी के साथ भेजे गए 12 सूक्ष्म उपकरणों ने शनि व उसके सबसे बड़े उपग्रह टाइटन और शनि के वलयों पर बहुमूल्य जानकारी समेटी और पृथ्वी पर भेजी। यहां तक कि 14 जनवरी 2005 को कैसिनी से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के यान हाइगेंस-टाइटन को अलग कर शनि के उपग्रह टाइटन पर उतारा गया।
सतह पर मीथेन और ईथेन के सागर

शनि का उपग्रह टाइटन बुध ग्रह एवं चंद्रमा से भी आकार में अधिक बड़ा है। इस उपग्रह का अपना वायुमंडल भी है। इसमें मुख्यत: नाइट्रोजन एवं मीथेन हैं। इसकी सतह पर द्रव अवस्था में मीथेन और ईथेन के सागर हैं। टाइटन पर जीवन के लिए आवश्यक आदि-कालीन अणुओं की मौजूदगी की भी संभावना जताई जाती है। कैसिनी के जरिए शनि के उपग्रह एन-सेलाडस पर बर्फीले जेट खोजे गए।
शनि के वलयों का अनोखा संसार

कपूर ने बताया कि बृहस्पति के बाद शनि सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह सौरमंडल का सबसे सुंदर ग्रह भी है। शनि के वलय उसकी सुंदरता को अद्वितीय बना देते हैं। गैलीलियो ने 16 10 में इन वलयों को देखा जरूर पर इन्हें शनि का उपग्रह ही समझा। इसके बाद 16 59 में हाइगेंस ने इन्हें वलय के रूप में पहचाना। 16 75 में कैसिनी नामक खगोल वैज्ञानिक ने इन वलयों के बीच रिक्त स्थान की पहचान की जिसे कैसिनी डिविजन कहा जाता है। शनि व इसके
उपग्रहों और वलयों का संसार अनोखा और रहस्यमय है। वलय क्या हैं और कैसे चमकते हैं यह एक पहेली रही है। इन्हीं को गहराई से जानने के उद्देश्य से नासा, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और इटालियन स्पेस एजेंसी ने संयुक्त प्रयास
से 1997 में कैसिनी नामक अंतरिक्षयान शनि की ओर रवाना किया। सात साल की लंबी यात्रा के बाद यह अंतरिक्षयान 1 जुलाई 2004 को शनि की कक्षा में स्थापित हुआ। यह एक आश्चर्यजनक यात्रा थी।
कई रहस्यों से उठेगा पर्दा

प्रोफेसर कपूर ने बताया कि तेरह वर्ष तक खोजबीन के अनेकानेक द्वार खोल देने के बाद कैसिनी ने इस वर्ष 22 अप्रेल से शनि की अंतिम परिक्रमाएं शुरू कर दी। कुल 22 परिक्रमाओं के बाद 15 सितंबर को यह शनि में सीधे गिरकर उसमें समा जाएगा। वैज्ञानिकों के लिए यह भावुक किंतु महत्वपूर्ण मौका है। शनि के भीतरी वलयों से गुजरकर कैसिनी ने शनि पर वातावरण के नमूने भी इकट्ठे किए। यह पता चल सकेगा कि शनि में मौजूद हाइड्रोजन एवं हीलियम का अनुपात क्या है। गिरने के समय कैसिनी से 1 से 2 मिनट का ही संपर्क रहेगा। इतने भी क्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जब सूचनाओं के तत्काल प्राप्त होने की उम्मीद है। इसके साथ ही पता चलेगा कि शनि के चुंबकीय क्षेत्र की प्रकृति उसके वलयों का भार और शनि पर एक दिन कितना लंबा है। आखिर में यह ज्ञान दूत शनि में लुप्त हो जाएगा।

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