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‘लव जिहाद’ कानूनों पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, लेकिन सुनवाई के लिए तैयार

locationनई दिल्लीPublished: Jan 06, 2021 05:26:24 pm

Submitted by:

Anil Kumar

HIGHLIGHTS

सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लागू ‘लव जिहाद’ कानूनों ( Love Jihad Laws ) पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों (यूपी-उत्तराखंड) से अगले चार हफ्तों में जवाब मांगा है।

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Supreme Court Agrees To Hear Love Jihad Law That Enforced In Uttar Pradesh Uttarakhand

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ( Supreme Court ) ने बुधवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लागू विवादित ‘लव जिहाद’ कानूनों ( Love Jihad Laws ) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है और चार हफ्ते बाद इसकी सुनवाई की तारीख भी दे दी है।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह तब ज्यादा अच्छा होता, जब याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से पहले संबंधित (राज्य के) हाईकोर्ट में जाते। इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों राज्यों (उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) को नोटिस जारी करते हुए 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता ने कहा- शादी का मकसद साबित करना ठीक नहीं

सुनवाई के दौरान कोर्ट से याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील सीयू सिंह ने कहा कि शादीशुदा जोड़े पर दबाव डालकर ये जानना कि शादी का मकसद धर्म-परिवर्तन नहीं है, ये उचित नहीं है। सीयू सिंह ने दलील दी कि कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें भीड़ ने अंतर-धार्मिक शादी में रूकावटें पैदा की और इस कानून के तहत सख्त सजा दिलाने का हवाला भी दिया।

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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून से संबंधित कई याचिकाएं दायर की गई है। इसमें से कुछ एडवोकेट विशाल ठाकुर, अभय सिंह यादव और लॉ रिसर्चर प्रनवेश ने की है। याचिका में संविधान के उल्लंघन की बात कही गई है। याचिका में कहा गया है कि सरकार की ओर से जारी अध्यादेश से संविधान का मूल ढांचा प्रभावित हुआ है। ऐसे अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या संसद को संविधान के भाग-3 के तहत दिए गए मूलभूत अधिकारों में परिवर्तन करने का अधिकार है।

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कानून बनाने वाला पहला राज्य बना उत्तर प्रदेश

आपको बता दें कि जबरन धर्म परिवर्तन कर (लव जिहाद के तहत) शादी करने के संबंध में कानून बनाने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया। यहां पर पिछले 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार कैबिनेट ने ‘गैर कानूनी धर्मांतरण विधेयक 2020’ को मंजूरी दे दी, जिसके बाद राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने 28 नवंबर को इसे मंजूरी दी थी। इस कानून के तहत गैर जमानती धाराओं में मामला दर्ज करने और 10 साल की कड़ी सजा का प्रावधान है।

भारत के 9 राज्यों में है जबरन धर्मांतरण रोकने का कानून

आपको बता दें कि जबरन धर्मांतरण को लेकर भारत के 9 राज्यों में पहले से कानून का प्रावधान है। इसमें कांग्रेस और भाजपा शासित राज्यों के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व वाले राज्य भी शामिल हैं। तमिलनाडु में जबरन धर्मांतरण पर पहले से ही कानून बना था, लेकिन फिर 2003 इसे निरस्त कर दिया गया था।

– छत्तीसगढ:- यहां पर छत्तीसगढ़ फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1968 लागू है। इसके तहत यदि को ई व्यक्ति किसी दूसरे समूदाय या धर्म के व्यक्ति का जबरन धर्म परिवर्तन कराता है तो उसके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान है। दोषी को दो साल की कैद या दस हजार रुपये तक जुर्माना या दोनो हो सकता है। यदि पीड़ित व्यक्ति या परिवार SC/ST से संबंध रखता हो तो दोषी को चार साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है।

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– झारखंड:- इस राज्य में झारखंड फ्रीडम रिलीजन एक्ट 2017 लागू है। झारखंड में यदि कोई व्यक्ति जबरन धर्मांतरण का दोषी पाया जाता है तो दोषी को 3 साल की सजा और 50 हजार का जुर्माना हो सकता है। यदि पीड़ित व्यक्ति या परिवार SC/ST से संबंध रखता हो तो दोषी को चार साल की सजा और एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है।

– ओडिशा:- यहां पर ओडिशा फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1967 लागू है। इसके तहत जबरन धर्मांतरण कराने के दोषी को एक साल तक की कैद और 5 हजार तक का जुर्माना हो सकता है। पीड़ित परिवार या व्यक्ति SC/ST से संबंध है तो दोषी को 10 हजार रुपये तक जुर्माना और दो साल तक जेल हो सकता है।

– हिमाचल प्रदेश:- यहां पर पिछले साल ही कानून बना है। हिमाचल फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2019 के तहत जबरन धर्मांतरण कराने के दोषी को पांच साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। SC/ST के मामले में दोषी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।

– उत्तराखंड:- यहां पर उत्तराखंड फ्रीडम रिलीजन एक्ट 2018 लागू है। इसके तहत दोषी को जबरन धर्मांतरण कराने के दोषी को पांच साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। SC/ST के मामले में दोषी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।

– राजस्थान:- यहां पर राजस्थान धर्म स्वतांत्र्य एक्ट 2006 लागू है। इसके तहत जबरन धर्म परिवर्तन कराने वाले दोषी को 5 साल जेल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है।

– गुजरात:- यहां पर गुजरात फ्रीडम रिलीजन एक्ट 2003 लागू है। इसके तहत दोषी को 3 साल की कैद और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। SC/ST के मामले में दोषी को चार साल की कैद और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

– अरुणाचल प्रदेश:- यहां पर अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1978 लागू है। इसके तहत दोषी को 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक जुर्माना का प्रावधान है।

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– मध्य प्रदेश:- यहां पर मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1968 लागू है। इसके तहत दोषी व्यक्ति को 3 साल की कैद या 20 हजार रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है। SC/ST के मामले में चार साल की कैद और 20 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है। हालांकि मध्य प्रदेश में एक बार फिर से नए कानून बनाने की तैयारी की जा रही है और इसके लिए कानून का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है।

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भारत में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कब-कब कानून बनाने के प्रयास हुए?

भारत में आजादी से पहले भी धर्मांतरण को लेकर कोई कानून नहीं था। लेकिन कानून बनान के प्रयास आजादी से पहले और आजाद भारत में कई बार किया गया। आजादी से पहले देश के चार रियासतों (राजगढ़, पटना, सरगुजा और उदयपुर) में जबरन धर्मांतरण को लेकर कानून थे। भारत में सबसे पहले राजगढ़ में 1936 में ऐसा कानून बना। उसके बाद 1942 में पटना, 1945 में सरगुजा और फिर 1946 में उदयपुर में कानून बना। इन तमाम रियासतों में हिन्दुओं को ईसाई धर्म में बदलने से रोकने के लिए यह कानून बनाया गया था।

आजादी के बाद भारत सरकार की ओर से 1954 में धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बनाने का पहला प्रयास किया गया। लोकसभा में ‘भारतीय धर्मांतरण विनियमन एवं पंजीकरण विधेयक’ लाया भी गया, लेकिन पास नहीं हो सका। इसके बाक 1960 और 1979 में एक बार फिर से एक बिल लाया गया, लेकिन दोनों बार भी बहुमत के अभाव में बिल पास नहीं हो सका।

इसके बाद 10 मई 1995 में सरला मुदगल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुलदीप सिंह और जस्टिस आरएम सहाय की बेंच ने एक कमिटी बनाने का सुझाव दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुझाव इसलिए भी दिया था क्योंकि उस दौरान हिन्दू पुरुष एक से अधिक शादी करने के लिए इस्लाम कबूल कर रहे थे। इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाजत है, लेकिन हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत जीवित पत्नी के रहते हुए या बिना तलाक दिए दूसरी शादी करना अपराध है।

क्या राज्य सरकारें बना सकती है कानून?

हमारा देश संघीय व्यवस्था पर आधारित है। यानी कि कुछ विषय पर केंद्र सरकार कानून बनाती है, जो पूरे देश में लागू होता है। कुछ विषय पर राज्यों को अधिकार है कि वह अपने राज्य के जरूरत और सुविधानुसार कानून बना सके। जबकि कुछ विषयों पर राज्य और केंद्र दोनों को अधिकार है कि वह कानून बना सके।

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जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में हमारे संविधान में कोई ठोस कानून नहीं है। हालांकि, डरा-धमका कर धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया है। राज्य सरकारें इस विषय पर कानून बना सकती है। राज्यों की ओर से बनाए गए कानूनी बिल को विधानसभा में पास कराने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद बिल कानून बन जाता है।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ‘गैर कानूनी धर्मांतरण विधेयक 2020’ लाए जाने के बाद से असम, हरियाणा, कर्नाटक और अन्य भाजपा शासित राज्यों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी की जा रही है।

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विदेशों में जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून

आपको बता दें कि भारत में भले ही जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कोई कानून नहीं है, लेकिन कई पड़ोसी देशों में सख्त कानून है। इसके लिए कड़े सजा का प्रावधान भी किया गया है।

– पाकिस्तान:- पड़ोसी देश पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है और यहां की 95 फीसदी आबादी मुस्लमान है। जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में पाकिस्तान में 5 साल कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।

– श्रीलंका:- श्रीलंका की 69 फीसदी आबादी बौद्ध है। यहां पर 15 फीसदी हिन्दू और 8-8 फीसदी क्रिश्चियन और मुस्लमान आबादी है। जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में यहां पर 7 साल जेल की सजा का प्रावधान है।

– नेपाल:- नेपाल की जनसंख्या में 81.3 फीसदी आबादी हिन्दुओं की है, जबकि 4.4 मुस्लिम और 1.4 क्रिश्चियन आबादी है। जबरन धर्मांतरण के दोषी को 6 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है।

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– म्यांमार:- यहां की जनसंख्या में 87.9 फीसदी बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं। वहीं, 6.2 क्रिश्चियन और 4.3 मुस्लिम जनसंख्या है। जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में 2 साल जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

– भूटान:- भूटान की जनसंख्या में 75 फीसदी बौद्ध धर्म के लोग हैं, जबकि 22 फीसदी हिन्दू आबादी है। यहां पर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन ये तय किया गया है कि कोई भी किसी का जबरन धर्मांतरण नहीं करवा सकता है।

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