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जस्टिस दीपक मिश्रा के जजमेंट भी जान लीजिए, जिनपर आज सवाल उठे हैं

locationनई दिल्लीPublished: Jan 12, 2018 08:19:45 pm

Submitted by:

Chandra Prakash

ये पहली बार नहीं है जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को लेकर सवाल उठे हैं। इससे पहले भी जस्टिस मिश्रा के फैसले और बेबाक टिप्पणी भी सुर्खियों बन चुकी हैं

Deepak Mishra
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जज आमतौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों और मीडिया से दूरी बनाए देखे जा सकते हैं, लेकिन शुक्रवार को जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने एकसाथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की पूरे देश में हड़कंप मच गया। जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर के साथ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने करीब 15 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीफ जस्टिस पर गंभीर आरोप लगाए।

चीफ जस्टिस पर सीधा आरोप
इन 4 जजों ने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत में प्रशासनिक व्यवस्थाओं का पालन नहीं किया जा रहा है। चीफ जस्टिस न्यायिक पीठों को सुनवाई के लिए मुकदमे मनमाने ढंग से आवंटित कर रहे हैं, जिसकी वजह से न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर दाग लग रहा है।

पहले भी चर्चा में रहे हैं जस्टिस मिश्रा
ये पहली बार नहीं है जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को लेकर सवाल उठे हैं। 10 अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट के जज और 27 अगस्त, 2017 को देश के चीफ जस्टिस बने दीपक मिश्रा इससे पहले कई बार चर्चा में रहे हैं। जस्टिस दीपक मिश्रा के फैसले और बेबाक टिप्पणी भी उन्हें सुर्खियों में ला चुकी है।

सिनेमाघरों में राष्ट्रगान
– 30 नवंबर 2016 को जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही देशभर के सिनेमा घरों में फिल्म से पहले राष्ट्रगान चलाने का आदेश सुनाया था। हालांकि 9 जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ही एक अहम फैसला सुनाते हुए सिनेमा घरों में राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता खत्म कर दी है।

FIR की कॉफी 24 घंटे में वेबसाइट पर
– 7 सितंबर 2016 को जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस सी नगाप्पन की बेंच ने एफआईआर को लेकर बड़ा आदेश दिया था। बेंच ने कहा कि देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों की पुलिस को एफआईआर की कॉपी 24 घंटे के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी।

मानहानि आपराधिक केस
– 13 मई 2016 को जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही आपराधिक मानहानि के प्रावधानों की संवैधानिकता को बनाए रखाने का आदेश सुनाया था। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अभिव्यक्ति का अधिकार असीमित नहीं है।

याकूब मेनन की फांसी
– 29 जुलाई 2013 की रात 1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेनन की फांसी मामले पर आधी रात को कोर्ट में सुनवाई हुई थी सुनवाई करने वाले तीन जजों में जस्टिस दीपक मिश्रा भी थे। सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद जस्टिस मिश्रा ने सुबह 5 बजे कहा कि फांसी के आदेश पर रोक लगाना न्याय की खिल्ली उड़ाना होगा। इसके मजह कुछ ही घंटों के बाद याकूब मेनन को 30 जुलाई को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

प्रमोशन में आरक्षण पर रोक
27 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी की मायावती सरकार को बड़ा झटका दिया था कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी, इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ही इस फैसले कायम रखने का जजमेंट सुनाया था।

निर्भया के कातिलों को सजा-ए-मौत
5 मई 2017 को निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरा रखा था। जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस बानुमति की बेंच ने ही ये फैसला सुनाया था। बेंच ने कहा कि अपराध ऐसा है जिसके लिए माफी की गुंजाइश ही नहीं है।
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