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धारा 377: समलैंगिकता अपराध है या नहीं इसपर सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला

locationनई दिल्लीPublished: Sep 05, 2018 06:27:18 pm

Submitted by:

Prashant Jha

समलैंगिकता अपराध है या नहीं इस पर लंबी बहस जारी है। लेकिन शीर्ष कोर्ट अब अपना फैसला सुनाने जा रहा है। जिस पर सभी की नजरें टिकी हैं।

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धारा 377: समलैंगिकता अपराध है या नहीं इसपर सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला

नई दिल्ली: धारा 377 की वैधता पर देश की सबसे बड़ी अदालत अपना फैसला सुनाएगी। गुरुवार की सुबह धारा 377 पर फैसला सुनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में इसपर सुनवाई पूरी हो चुकी है। 17 जुलाई को शीर्ष कोर्ट अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था। बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिकता एक अपराध है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 9 जुलाई को धारा 377 की सुनवाई को स्थगित करने से की मांग को खारिज कर दिया था। संविधान पीठ द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के विरुद्ध याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित करने की मांग केंद्र सरकार की ओर से की गई थी। जिसपर शीर्ष अदालत ने याचिका खारिज कर दी। सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा अब प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ सुनवाई कर रहे हैं ।
केंद्र ने मांगा था समय

हालांकि केंद्र सरकार ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए या नहीं इसका फैसला देश की शीर्ष अदालत पर छोड़ दिया है। वहीं इससे पहले केंद्र ने मामले के संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से समय मांगा, जिसके बाद प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले को स्थगित करने से इनकार कर दिया।

क्या है मामला?

सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में समलैंगिक यौन संबंधों को दोबारा गैर कानूनी बनाए जाने के पक्ष में फैसला दिया था, जिसके बाद कई प्रसिद्ध नागरिकों और एनजीओ नाज फाउंडेशन ने इस फैसले को चुनौती दी थी। इन याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ के पास भेज दिया था। शीर्ष न्यायालय ने आठ जनवरी को कहा था कि वह धारा 377 पर दिए फैसले की दोबारा समीक्षा करेगा और कहा था कि यदि ‘समाज के कुछ लोग अपनी इच्छानुसार साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें डर के माहौल में नहीं रहना चाहिए।’सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में 2013 में दिए अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दो जुलाई, 2009 को दिए फैसले को खारिज कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिक सैक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में फैसला सुनाया था।

क्या है धारा 377?

भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यह आईपीसी की धारा 377 के अप्राकृतिक (अननैचुरल) यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराता है। इस धारा के तहत दो लोग आपसी सहमति या असहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाते हैं और दोषी पाए जाते हैं उनपर दस साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। बता दें कि सहमति से 2 पुरुषों, स्त्रियों और समलैंगिकों के बीच यौन संबंध भी इसके दायरे में आता है।

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