सीबीआई ने हालांकि ‘नए तथ्यों’ की ओर इशारा किया था, लेकिन 12 वर्ष लंबे अंतराल के बाद याचिका पर सुनवाई का निर्णय लेना सुप्रीम कोर्ट के लिए आसान नहीं था। याचिका दायर करने के समय ही अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार को बताया दिया था कि उनके विचार में वर्ष 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध इतने लंबे समय बाद याचिका दाखिल करने का औचित्य सिद्ध करना मुश्किल होगा। कार्मिक सचिव को लिखे एक पत्र में वेणुगोपाल ने कहा था कि इस निर्णय के 12 वर्ष से ज्यादा समय गुजर गए हैं। इस समय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस संबंध में याचिका, मेरे विचार में देरी के आधार पर संभवत: खारिज कर दी जाएगी।
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आपको बता दें कि साल 2005 में हिंदुजा बंधुओं को इस मामले से बरी करने के फैसले को अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने चुनौती दी थी, जोकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं। अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता मनिंदर सिंह ने अदालत से कहा था कि सीबीआई ने इस फैसले को चुनौती नहीं दी, जबकि उसे ऐसा करने की सलाह दी गई थी और निर्णय को चुनौती दिए जाने की जरूरत है।