कितना खतरनाक है ग्लाइडर बम?
आपको बता दें कि इस बम की मदद से फाइटर प्लेन दुश्मन के रेंज में गए बिना लक्ष्य को भेद सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर पाकिस्तान के किसी इलाके में हमला करना है तो भारतीय वायुसेना के फाइटर प्लेन अपनी सीमा से इन बमों को टारगेट की ओर दागेंगे। जिसके बाद ये बम टारगेट को पूरी तरह से तबाह कर देगा। इस तरह वायुसेना बिना खतरा मोल लिए किसी भी लक्ष्य पर अभेद निशाना साध सकती है। जानकारी के मुताबिक साल 2013 में डीआरडीओ ने ग्लाइडर बम पर काम शुरू किया था। इसका पहला टेस्ट बेंगलुरु में तो वहीं दूसरा टेस्ट पिछले साथ राजस्थान के थार में किया गया था। दोनों टेस्ट कामयाब रहे थे। जिसके बाद राजस्थान के चांदीपुर रेंज में तीसरा सफर परीक्षण किया गया। इस परीक्षण के दौरान बम को लांचिंग पैड से दूर 70 किलोमीटर दूर निर्धारित लक्ष्य की ओर दागा गया। जिसे ग्लाइडर बम ने सफलता पूर्वक भेद दिया।
आपको बता दें कि इस बम की मदद से फाइटर प्लेन दुश्मन के रेंज में गए बिना लक्ष्य को भेद सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर पाकिस्तान के किसी इलाके में हमला करना है तो भारतीय वायुसेना के फाइटर प्लेन अपनी सीमा से इन बमों को टारगेट की ओर दागेंगे। जिसके बाद ये बम टारगेट को पूरी तरह से तबाह कर देगा। इस तरह वायुसेना बिना खतरा मोल लिए किसी भी लक्ष्य पर अभेद निशाना साध सकती है। जानकारी के मुताबिक साल 2013 में डीआरडीओ ने ग्लाइडर बम पर काम शुरू किया था। इसका पहला टेस्ट बेंगलुरु में तो वहीं दूसरा टेस्ट पिछले साथ राजस्थान के थार में किया गया था। दोनों टेस्ट कामयाब रहे थे। जिसके बाद राजस्थान के चांदीपुर रेंज में तीसरा सफर परीक्षण किया गया। इस परीक्षण के दौरान बम को लांचिंग पैड से दूर 70 किलोमीटर दूर निर्धारित लक्ष्य की ओर दागा गया। जिसे ग्लाइडर बम ने सफलता पूर्वक भेद दिया।
ऐसे समझें इसकी कार्यप्रणाली
इसके चार अहम हिस्से होते हैं। जिसमें इलेक्ट्रानिक सेंसर सिस्टम, कंट्रोल सिस्टम, पंखे और बैटरी। जब इसे तेज रफ्तार फाइटर प्लेन से छोड़ा जाता है तो ये उसकी रफ्तार हासिल कर लेता है। इस बम में रफ्तार बढ़ाने वाला कोई भी यंत्र नहीं लगा है। पंखे की वजह से ये नीच नहीं गिरता है। कंट्रोल रूम में बैठ कर इसे टारगेट की स्थिति बताई जाती है और सेंसर की मदद से ये अपने टारगेट को आसानी से पहचान लेता है। बैटरी से चलने वाले पंखों की मदद से इसकी दिशा को आसानी से बदला जा सकता है। टारगेट पर पहुंचते ही इसके पंखे को बंद कर दिया जाता है और ये सीधे जाकर निशाने को भेद देती है।
इसके चार अहम हिस्से होते हैं। जिसमें इलेक्ट्रानिक सेंसर सिस्टम, कंट्रोल सिस्टम, पंखे और बैटरी। जब इसे तेज रफ्तार फाइटर प्लेन से छोड़ा जाता है तो ये उसकी रफ्तार हासिल कर लेता है। इस बम में रफ्तार बढ़ाने वाला कोई भी यंत्र नहीं लगा है। पंखे की वजह से ये नीच नहीं गिरता है। कंट्रोल रूम में बैठ कर इसे टारगेट की स्थिति बताई जाती है और सेंसर की मदद से ये अपने टारगेट को आसानी से पहचान लेता है। बैटरी से चलने वाले पंखों की मदद से इसकी दिशा को आसानी से बदला जा सकता है। टारगेट पर पहुंचते ही इसके पंखे को बंद कर दिया जाता है और ये सीधे जाकर निशाने को भेद देती है।