प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के मुताबिक किसी भी वैक्सीन को तैयार करने में करीब 10 साल का वक्त लगता है, लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए इसे एक साल के अंदर तैयार करने पर जोर दिया जा रहा है। इसीलिए इनवेस्टमेंट्स बढ़ा दी गई हैं और रिसर्च का दायरा भी। वैक्सीन बनाने और उसके बड़े पैमाने पर प्रॉडक्शन एवं डिस्ट्रीब्यूशन में भारी रकम खर्च होगी। इसमें 2 से 3 बिलियन डॉलर (1515 करोड़ रुपये-2272 करोड़ रुपये) का खर्च आ सकता है।
कोरोना के खात्मे के लिए इस समय भारत में कुछ खास दवाईयों पर रिसर्च की जा रही है। इनमें favipiravir, itolizumab, phytopharmaceutical (प्लांट बेस्ड), microbacterium W, convalescent plasma, arbidol, ACQH, HCQ, remdesivir और BCG वैक्सीन शामिल हैं। ये सभी अंडर ट्रायल हैं। वैक्सीन बनने के बाद भी ये एक साथ सबको नहीं मिलेगी। क्योंकि इसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को दिया जाएगा।
भारत सरकार के प्लान के अनुसार रिसर्च और डेवलपमेंट की तीन लाइन्स हैं। पहले स्टेज में घरेलू कोशिशें हों। दूसरे में ग्लोबल लेवल पर सहयोग हो जिसमें भारतीय संस्थान लीड रोल में हैं और तीसरा ग्लोबल कोशिशों में भारत की भी हिस्सेदारी हो। इस मामले में प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजयराघवन का कहना है कि रेगुलेटरी प्रोसेस को तेज करने की जरूरत होगी। तभी मैनुफैक्चरिंग की क्षमता को बढ़ाया जा सकेगा।