राजकमल चौधरी : 60 के दशक में ही दिला दी स्वीकृति यह हिंदी के ऐसे लेखक थे, जिन्होंने समलैंगिक संबंधों को 60 के दशक में ही अपनी रचनाओं में स्वीकृति दिला दी थी। इस विषय को उन्होंने अपने उपन्यास ‘मछली मरी हुई’ में लिया था। चौधरी का यह सबसे चर्चित और उतना ही विवादास्पद नॉवेल रहा है। विद्वानों का मानना है कि यह इतना कालजयी भी है कि अगर वह केवल यही उपन्यास लिखते, तो भी हिंदी साहित्य में अमर रहते। यह नॉवेल महिलाओं के समलैंगिक संबंधों पर लिखा एक कथानक भर नहीं बल्कि मानव व्यवहार का एक दस्तावेज भी है।
विक्रम सेठ : कविताएं पढ़कर मां को पता चला… अंग्रेजी में लिखने वाले विक्रम सेठ ने 1993 में ‘अ सूटेबल बॉय’ नाम से नॉवेल लिखा, जिसमें उन्होंने समलैंगिक लोगों की भावनाओं का चित्रण किया था। इस नॉवेल की केवल यूनाइटेड किंगडम में ही 10 लाख से ज्यादा कॉपी बिक गई थीं। इसके लिए उन्होंने कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। इस नॉवेल को बेहतरीन साहित्यिक रचना कहा गया है।
विक्रम सेठ खुद गे हैं। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी कविताओं में करना शुरू कर दिया था। उनकी मां लीला सेठ को भी विक्रम की इस बात का पता कविताओं से ही चला था। उनकी मां ने अपनी आत्मकथा लिखने से पहले उनकी समलैंगिकता को दुनिया के सामने बयान करने की आज्ञा ली थी। विक्रम ने अपने लेखन के माध्यम से इस विषय पर जागरूकता भी फैलाई।
आन्द्रास गेरेविच : समलैंगिक कविताओं का कवि बूढापेस्ट में पैदा हुए अन्द्रास गेरेविच ने भी अपनी कविताओं का विषय समलैंगिकता को बनाया। अपनी कविताओं ने उन्होंने इस विषयों को खुलकर पेश किया है। बुडापेस्ट से अंग्रेजी साहित्य में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अमरीका से रचनात्मक लेखन और ब्रिटेन से पटकथा लेखन की डिग्रियां हासिल कीं। हंगरी के साहित्यिक मासिक “कालिग्राम’ के कविता संपादक होने के साथ ही लंदन से प्रकाशित होने वाली साहित्य और कला की पत्रिका “क्रोमा’ के भी संपादक हैं।
इस्मत चुगताई : “लिहाफ’ के लिए चला मुकदमा इन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं। इस्मत ने महिलाओं के विषयों को नए सिरे से उठाया। संमलैंगिकता को उभारने वाली उनकी कहानी “लिहाफ’ के लिए उन पर अश्लीलता तक का आरोप लगा। सन 1942 में जैसे ही यह कहानी छपी, उर्दू-साहित्य जगत में बवाल मच गया। इसके कारण उन पर समलैंगिकता के नाम पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगा। लाहौर हाई कोर्ट में मुकदमा चला, जो बाद में वह खारिज हो गया। सन 1998 में दीपा मेहता निर्देशित फिल्म ‘फायर’ इस्मत की इसी कहानी पर आधारित थी।
इफ्तिखार नसीम : LGBT के लिए किए कई काम पाकिस्तानी-अमरीकी इस लेखक की समूची कविताएं ही समलैंगिकता विषय के इई-गिर्द घूमती हैं। नसीम LGBT समुदाय के लिए एक्टिविस्ट भी रहे हैं। पाकिस्तान के फैसलाबाद में जन्मे नसीम को स्कूल के दिनों से ही पता चल गया था कि उनका झुकाव किस तरफ है। उनकी उर्दू में लिखी किताब “नरमन’ लिखी, जिसका मतलब होता है- आधा मर्द-आधी औरत। उनकी कविताओं का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। नसीम ने अपनी कविताओं में खुलकर इस समुदाय के विचारों को अभिव्यक्त किया है। भारतीय पंजाब में भी उनकी कविताओं को पढ़ा जाता है।