यह हमला उस वक्त हुआ था जब सीआरपीएफ का काफिला जम्मू से श्रीनगर के लिए नेशनल हाईवे से निकल रहा था। इसके लिए सीआरपीएफ ने सुरक्षा व्यवस्था को लेकर काफी सावधानी बरती थी, लेकिन सीआरपीएफ की ही एक छोटी सी चूक से इतना बड़ा हमला हो गया।
दरअसल, सीआरपीएफ ने काफिले के रूट को लेकर पूरी सावधानी बरती थी। यहां तक कि ग्रेनेड हमले या अचानक से होने वाली फायरिंग को लेकर भी काफी सतर्कता दिखाई थी। काफिले से पहले सीआरपीएफ ने रूट की पूरी तरह से जांच की थी। ‘रोड ओपनिंग पार्टी’ ने सुबह पूरे रूट की चेकिंग की थी। उस रूट पर कहीं पर भी आईईडी नहीं पाया गया था।
लेकिन स्थानीय नागरिकों के वाहनों को राजमार्ग की अनुमति देने की छोटी सी चूक 40 से ज्यादा जवानों को शहीद कर गई। स्थानीय नागरिकों को दी गई आजादी का ही फायदा जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद ने उठाया।आदिल एक सर्विस रोड से जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर आया और बाद में उसने अपनी गाड़ी से सीआरपीएफ काफिले की एक बस को टक्कर मार दी और फिदायीन हमले को अंजाम दिया। सीआरपीएफ काफिले में 78 गाड़ियों थीं जिनमें 2,547 जवान शामिल थे।
बता दें कि पहले जम्मू-कश्मीर में जब सुरक्षाबलों का काफिला चलता था, तब बीच में स्थानीय नागरिकों की गाड़ियों को आने जाने की अनुमति नहीं होती थी। हालांकि जब हालात ठीक होने लगे तो काफिले के बीच में या आगे-पीछे सिविल गाड़ियो को चलने की अनुमति दे दी गई। यह अब खतरनाक साबित हो गया।