एक कथा के अनुसार क समय मरू वंश के वशंज राजा शैल वर्मा भरमौर के राजा थे। वो निःसंतान थे। एक बार चौरासी योगी ऋषि इनकी राजधानी में पधारे। राजा की विनम्रता और आदर-सत्कार से प्रसन्न हुए इन 84 योगियों के वरदान के फलस्वरूप राजा साहिल वर्मा के दस पुत्र और चम्पावती नाम की एक कन्या को मिलाकर ग्यारह संतान हुई।
प्राचीन नक्काशी, अपरिवर्तनीय कार्य है और ऐसी कलाकृतियों पर भरोसा करना अक्सर मुश्किल होता है। ऐसे ही प्राचीन नक्काशी का उत्कृष्ट उदाहरण है लक्ष्ना देवी का मंदिर।
हिमाचल प्रदेश के चंबा में स्थित यह मंदिर मेरु वर्मन के शासनकाल के दौरान स्थापित किया गया था। मंदिर भर्मौर, जिले में चौरासी मंदिर परिसर में सबसे प्राचीन मंदिर में से एक माना जाता है।
लक्ष्ना देवी मंदिर देवी दुर्गा को चार हाथों को के रूप में समर्पित है।
भरमौर कुछ पुराने पुरातात्विक अवशेषों के लिए जाना जाता है, मुख्यतः मंदिरों 84 सिध्दों के बाद इन सभी मंदिरों को चौरासी कहा जाता है। लक्ष्ना देवी मंदिर की नक्काशीदार लकड़ी की संरचना पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में लकड़ी में नक्काशी का सबसे पुराना जीवित नमूना है।