करीब 300 साल बाद सैकडों किन्नरों ने एक साथ मिलकर वाराणसी के गंगा घाट पर पिंडदान किया।
वाराणसी। करीब 300 साल बाद सैकडों किन्नरों ने एक साथ मिलकर वाराणसी के गंगा घाट पर पिंडदान किया। शनिवार को वाराणसी के गंगा घाट पर किन्नरों ने अपने पूर्वजों का हिंदू रीति-रिवाजों से पिंडदान किया। माना जाता है कि पिछली तीन सदियों में कभी भी किसी किन्नर ने पिंडदान नहीं किया है।
आखिरी बार 16वीं सदी में हुआ था किन्नरों का पिंडदान
16वीं सदी में जब मुगल शासन था तब हिंदू धर्म को मानने वाले कुछ किन्नरों ने अपने पूर्वजों को मुक्ति देने के लिए पिंडदान किया था। वाराणसी में उज्जैन के किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बनारस के पिशाच मोचन कुंड पर ये पिंडदान किया। इसमें पंडितों ने हिंदू रीति रिवाजों और मंत्रोच्चारण के जरिए पिंडदान कराया। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने पिंडदान के बाद बताया कि हमारे लिए ये एक ऐतिहासिक मौका था। हमारे पूर्वजों की आत्मा पिंडदान के लिए सालों से भटक रही थी। अब हमारे पूर्वजों को भी मुक्ति मिल जाएगी।
पिंडदान के लिए देशभर के किन्नर वाराणसी में हुए एकत्रित
इस ऐतिहासिक पिंडदान के लिए शुक्रवार से ही देशभर के किन्नर एकत्रित होने लगे थे। पिंडदान करने से पहले देशभर से आए किन्नरों ने काशी विश्वनाथ के भी दर्शन किए। किन्नरों का पिंडदान कराने वाले पंडितों ने बताया कि अभी पूरे श्राद्धपक्ष में ये पूजा-पाठ चलती रहेगी। किन्नरों के इस पिंडदान आयोजन का हिस्सा बनने दुनियाभर से श्रद्धालु इकठ्ठा हुए हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति काशी में मरता है उसे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वो दोबारा जन्म नहीं लेता। बनारस में गंगा घाट पर लोग अपने पितरों को मुक्ति देने पहुंचे हैं। पिंडदान के लिए बनारस का पिशाच मोचन कुंड सबसे ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है।