नई दिल्ली। विधिवेत्ता एवं विधि आयोग के पूर्व सदस्य डॉ ताहिर महमूद ने तीन बार तलाक मामले में केन्द्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे का मुस्लिम इकाइयों के विरोध को अनुचित ठहराते हुए शनिवार को कहा कि कोई भी सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार ही कोर्ट के नोटिस का जवाब देगी। डॉ महमूद ने हालांकि समान नागरिक संहिता का मामला उठाने पर केन्द्र सरकार की आलोचना भी की।
उन्होंने कहा कि यह मसला उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा
चुनावों में राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है। सभी जानते हैं कि न केवल मुसलमान बल्कि बहुसंख्यक सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भी पर्सनल लॉ में छेड़छाड़ आसानी से बर्दाश्त नहीं करेंगे। विधि आयोग के पूर्व सदस्य ने जामिया कलेक्टिव की ओर से आयोजित एक व्याख्यान में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है और वह तोड़-मरोड़ कर कुरान की वास्तविक आयतों को पेश करके बड़ी प्रतिगामी भूमिका अदा कर रहा है।
उन्होंने कहा कि कुरान में एक ही समय तीन बार तलाक कहकर विवाह विच्छेद का प्रावधान कहीं नहीं किया गया है, लेकिन मुस्लिम इकाइयां इसका समर्थन करके गैर इस्लामी कार्य कर रही हैं। गौरतलब है कि सायरा बानो नामक एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके उसके पति द्वारा एक ही झटके में तीन बार तलाक कहकर उससे विवाह विच्छेद कर लेने को चुनौती दी है। इस मामले मेें शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार से उसका पक्ष पेश करने को हाल ही में कहा है।
सायरा बानो ने बहुपत्नी विवाह और हलाला (तलाक देने वाले पति से दुबारा शादी करने के लिए एक अन्य व्यक्ति से शादी करने की शर्त) के चलन का भी अपनी याचिका में विरोध किया है। डॉ महमूद ने कहा कि न्याय की गुहार लगा रहे देश के किसी नागरिक की याचिका पर संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप अपने विचार रखने के अलावा केन्द्र सरकार के पास कोई और विकल्प नहीं है।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम संगठनों को सायरा बानो मामले में पक्षकार बनने की कोई जरूरत ही नहीं है। यह मसला देश के एक पीडि़त नागरिक और कानून के बीच का है। तीन बार तलाक को सुप्रीम कोर्ट शमीम आरा मामले में पहले ही गैर कानूनी ठहरा चुका है अत: इस मसले को चुनौती देने की अब कोई जरूरत ही नहीं है। जाने-माने विधिवेत्ता ने समान नागरिक संहिता के मामले को उठाए जाने को लेकर सरकार की मंशा और गंभीरता पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, यह बहुत नाजुक मसला है और सरकार इसे लागू करने में पेश आने वाली दुश्वारियों को अच्छी तरह से जानती है। इसे उठाने का मुख्य मकसद चुनावों में राजनीतिक लाभ लेना है।