बुधवार को कानून मंत्री रतन लाल नाथ ने प्रदेश सचिवालय में पत्रकारों से बातचीत में कहा कैबिनेट बैठक में स्वपन देबबर्मा को ग्रुप डी एम्प्लॉयी के रूप में नियुक्त करने का फैसला किया गया। उन्होंने कहा, “एक भयानक आपदा को बचाने के लिए जांबाज स्वपन देबबर्मा की बेटी भी उनके साथ तेज रफ्तार ट्रेन को रोकने के लिए उसके आगे कूद गई थी। हमारी सरकार उनकी बेटी की शिक्षा का पूरा खर्च उठाएगी।”
छह लोगों के परिवार के मुखिया स्वपन देबबर्मा एक छोटी पहाड़ी पर रहते हैं जहां से सिलचर रेलवे स्टेशन और अगरतला स्टेशन को जोड़ने वाली रेलवे लाइन साफ दिखाई देती है। स्वपन एक गरीब आदिवासी ‘झुमिया’ है जो स्थानीय बाजार में ईंधन की लकड़ी, बांस जैसे सामान बेचकर अपनी जीविका चलाता है।
घटना 15 जून की है जब धरमनगर-अगरतला पैसेंजर ट्रेन अंबासा रेलवे स्टेशन से निकली ही थी तभी ट्रेन चालक ने देखा कि एक व्यक्ति रेलवे ट्रैक पर खड़ा हुआ है और जोर-जोर से अपनी शर्ट हिला रहा था। उस व्यक्ति के आगे ही एक छोटी सी लड़की खड़ी हुई थी। सोमती देबबर्मा ने मौत के मुंह खुद घुसने वाले इस काम के दौरान अपने पिता का साथ नहीं छोड़ा और निडर होकर खड़ी रही ताकि ट्रेन रुक जाए।
इसकी वजह थी कि बीते कई दिनों से हो रही बारिश के कारण कुछ दूर आगे के रेलवे ट्रैक के नीचे की मिट्टी और रोड़ी हट गई थी। अगर ट्रेन वहां से गुजरती तो निश्चित रूप से ही यह हादसे का शिकार हो जाती और इसमें सवार मुसाफिरों की जान पर बन आती। इस जांबाज बाप-बेटी ने बड़ा हौसला दिखाते हुए ट्रेन को हादसे का शिकार होने से बचाया। इसके बाद स्वपन और सोमती को राज्य विधानसभा में बुलाकर सभी सदस्यों ने खड़े होकर आभार जताया। इसके साथ ही विधानसभा ने एकमत में स्वपन का नाम बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार पाने के लिए नामित करने पर सहमति जताई।
इसके बाद स्वपन की गरीबी देखते हुए सरकार ने उन्हें ग्रुप डी कर्मचारी के तौर पर नौकरी देने का फैसला किया। सरकार ने एक विशेष मामला मानते हुए स्वपन को शैक्षिक योग्यता से छूट दे दी।